Book Title: Parmanu aur Loka Author(s): G R Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 3
________________ भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु 92 प्रकार के हैं । ये सब प्रोटोन, न्यूट्रोन और इलेक्ट्रोन की भिन्न-भिन्न संख्याओं से मिलकर बने हैं । अर्थात् इनमें कोई मौलिक अन्तर नहीं है। दीवाली के त्यौहार पर बिकनेवाले खांड के खिलौनों के समान कोई बन्दर दिखता है और कोई रानी; किन्तु वे हैं सब एक ही खांड के बने हुये । रानी के खिलौने को गलाकर बन्दर बनाया जा सकता है। हाइड्रोजन परमाणु के केन्द्र में 1 प्रोटोन है और उसके चारों ओर एक ही इलेक्ट्रोन घूमता है । हीलियम गैस के परमाणु के केन्द्र में 2 प्रोटोन और 2 न्यूट्रोन हैं और 2 इलेक्ट्रोन बाहर की परिधि मे घूमते हैं । लीथि यम के केन्द्र में 3 प्रोटोन और 4 न्यूट्रोन हैं और 3 इलेक्ट्रोन बाहर की परिधि में घूमते हैं । इसी प्रकार यह संख्या बढ़ती चली गई है । तांबे के परमाणु में 29, चांदी में 47, सोने में 79, पारें में 80 और सबसे भारी परमाणु रेनियम में 92 प्रोटोन होते हैं । प्रोटोन और न्यूट्रोन की तौल लगभग बराबर है । हल्के हाइड्रोजन के परमाणु केन्द्र में केवल 1 प्रोटोन है, उस परमार की तोल 1 है। भारी हाइड्रोजन के परमाणु की तौल 2 है, उसके केन्द्र में 1 प्रोटोन और 1 न्यूट्रोन हैं। हीलियम के परमाणु की तौल 4 है इसलिये उसमें 2 प्रोटोन और 2 न्यूट्रोन हैं। तांबे के परमास्तु की तौल 65 है अतएव उसमें 29 प्रोटोन और 36 न्यूट्रोन हैं । पारे के परमाणु की तौल 200 है और उसमें 80 प्रोटोन और 120 न्यूट्रोन हैं । और यूरेनियम के परमाणु की तौल 238 है और उसके परमाणु केन्द्र में 92 प्रोटोन और 146 न्यूट्रोन हैं । 1 मन भारी पानी पृथक् किया जाता है । निरा भारी पानी विष है । उसके पीने से मनुष्य मर जाता है । किन्तु जिस प्रकार मनुष्य कुचला, संखिया आदि विष अत्यन्त अल्प मात्रा में ताकत के लिये व्यवहार करते हैं। उसी प्रकार प्रकृति ने भारी जल जैसे विष को अल्प मात्रा में साधारण जल में मिला दिया है उन अभागे व्यक्तियों के लिये जो जीवन पर्यन्त निर्धनता अपने भाग्य में लिखाकर लाये हैं । यही कारण है असाधारण परिस्थितियों में मनुष्य इस भारी जल की चन्द बूंदों के सहारे कई-कई दिन भूखे काट देते हैं । विधि का विधान विलक्षण है । जिस भारी हाइड्रोजन का अभी उल्लेख किया है। उससे 'भारी जल' का निर्माण हुआ है जिस प्रकार हल्के हाइड्रोजन से नित्यप्रति व्यवहार में आनेवाले जल का निर्माण हुआ है । यह भारी पानी प्रकृति ने हल्के पानी में ही मिला रखा है - 6 सेर पानी में केवल 20 बूंद | लगभग 13000 टन पानी में से विद्युत द्वारा Jain Education International उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि सोना, चाँदी, लोहा आदि जो भिन्न-भिन्न पदार्थ इस धरा पर दृष्टिगोचर हो रहे हैं, इन सबका निर्माण एक ही प्रकार की ईट चूने से हुआ है। उनका नाम है-प्रोटोन, न्यूट्रोन और इलेक्ट्रोन । पुद्गल - संसार की रचना में दो द्रव्यों का प्रमुख भाग है - पहला जीव (चेतन ) या आत्मा और दूसरे को प्रकृति (जड़) या अचेतन कहा जाता है । जैनाचार्यों ने प्रकृति (जड़) को पुद्गल के नाम से पुकारा है और पुद्गल शब्द की व्याख्या उसके नाम के अनुरूप ही उन्होंने की है पूरयन्ति गलयन्ति इति पुद्गलाः' अर्थात् पुद्गल उसे कहते हैं जिसमें पूरण और गलन क्रियाओं के द्वारा नई पर्यायों का प्रादुर्भाव होता है । विज्ञान की भाषा में इसे फ्यूजन और फिशन या इन्टीग्रेशन और डिसइन्टीग्रेशन कहते हैं। एटम बम को फिशन बम और हाइड्रोजन बम को फ्यूजन बम इसी कारण कहा गया है । एटम बम में एटम के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और तब शक्ति उत्पन्न होती है और हाइड्रोजन बम में एटम परस्पर मिलते हैं तब उसमें शक्ति का प्रादुर्भाव होता है । 'तत्वार्थ सूत्र' के पंचम अध्याय सूत्र नं० 33 में कहा गया है - 'ग्निग्धरुक्षत्वाद्द्वंघः' अर्थात् स्निग्ध और २७५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8