Book Title: Pandulipiya Author(s): Hindi Sahitya Sammelan Publisher: Hindi Sahitya Sammelan View full book textPage 6
________________ हिन्दी संग्रहालय हिन्दी संग्रहालय एक शोध-प्रधान ग्रन्थालय है। उसको एक बृहत् ज्ञानकेन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित करने तथा अनुसंधान करने वाले विद्वानों के लिए अधिकाधिक उपयोगी बनाने में सम्मेलन के संस्थापकों का आदि से ही अविरत यत्न रहा है। हिन्दी संग्रहालय की स्थापना का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी रहा है कि उसमें ऐसी ज्ञान-संपदा एकत्र हो सके जिससे कि शोधकर्ता विद्वानों को एवं सामान्य अध्येताओं को एक ही स्थान पर हिन्दी साहित्य की सर्वांगीण जानकारी के साधन उपलब्ध हो सकें। हिन्दी संग्रहालय को स्थापित हुए आज लगभग २५ वर्ष हो रहे हैं। वैशाख सुदी ११, सोमवार, संवत् १९८९ विक्रमी, तदनुसार दिनांक १६ मई, १९३२ को अयोध्यावासी स्वर्गीय लाला सीताराम जी के कर कमलों द्वारा हिन्दी संग्रहालय का शिलान्यास हुआ और देश पिता स्वर्गीय बापू जी ने ५ अप्रैल, १९३६ ई० को संग्रहालय का उद्घाटन कर उसके गौरव को प्रशस्त किया। इस ज्ञानकेन्द्र को खड़ा करने और उसका उत्तरोत्तर निर्माण करने में राजर्षि बाबू पुरुषोत्तमदास जी टंडन का निरंतर सहयोग रहा है। हिन्दी संग्रहालय का कक्ष-विभाजन . संग्रहालय की ज्ञान-सामग्री पाँच कक्षों में विभाजित है : अनुशीलन कक्ष, वसु कक्ष, राजर्षि कक्ष, पुस्तकालय और रणवीर कक्ष। 'अनुशीलन कक्ष' संग्रहालय का प्रमुख कक्ष है, जिसमें वैज्ञानिक ढंग से मुद्रित ग्रन्थों को व्यवस्थित किया गया है। इन मुद्रित ग्रन्थों की संख्या आज ३१२०८ तक पहुँच गयी है। दूसरा मुद्रित पुस्तकों का 'वसु कक्ष' है। इस कक्ष की स्थापना प्रयाग के लब्ध प्रतिष्ठ डाक्टर ललितमोहन वसु द्वारा अपने स्वर्गीय पिता मेजर वामनदास वसु महोदय की पुण्य स्मृति में प्रदत्त उनकी बहुमूल्य चार हजार पुस्तकों, महत्वपूर्ण पत्रपत्रिकाओं के भेंट स्वरूप दिए जाने के फलस्वरूप की गई। तीसरे 'राजर्षि कक्ष' में राजर्षि टंडन जी के व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन से सम्बद्ध मूल्यवान् वस्तुओं का संग्रह है, जो कि समय-समय पर उनसे सम्मेलन को उपलब्ध होती रही है। संग्रहालय का चौथा कक्ष 'पुस्तकालय' है जो कि विभिन्न परीक्षाओं में प्रविष्ट होने वाले विद्यार्थियों एवं दिन के समय कार्य-व्यस्त रहने वाले पाठकों की सुविधा के लिए प्रातः तथा सायं खोला जाता है। इसमें सदस्य बन कर पुस्तकों को घर ले जाने का भी नियम है। पाँचवें कक्ष का नाम 'रणवीर कक्ष' है, जहां कि लगभग साढ़े पांच हजार हस्तलिखित पोथियाँ सुरुचिपूर्ण, कलात्मक एवं वैज्ञानिक ढंग से सुव्यवस्थित हैं। रणवीरकक्ष की स्थापना हिन्दी संग्रहालय के संवर्द्धन और अनुसंधानकर्ता विद्वानों के हितार्थ अक्टूबर १९५० ई० को हस्तलिखित पोथियों की व्यवस्था के लिए एक पृथक् कक्ष की स्थापना की गयी, जिसका नाम रखा गया 'रणवीर कक्ष'। इस कक्ष का नामकरण उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जनपद के प्रसिद्ध अमेठी राज्य के वर्तमान राजकुमार रणंजय सिंह जी के स्वर्गीय अग्रज राजकुमार रणवीर सिंह जी की स्मृति में किया गया। उदारमना राजकुमार रणंजय सिंह जी ने अपने संग्रह की लगभग ३०१ पोथियाँ संग्रहालय को भेंट स्वरूप प्रदान की। राजकुमार जी की प्रेरणा से प्रयाग निवासी हकीम श्री मोहनलाल जी ने भी ३० पोथियां संग्रहालय को भेंट की। सन् १९५० ईसवी से सम्मेलन की ओर से हस्तलिखित पोथियों का संग्रह कार्य बड़ी लगन एवं निष्ठा से सम्पन्न होना आरंभ हुआ। समय-समय पर अपने संग्रहकर्ता को बाहर भेज कर सम्मेलन ने इन बिखरे हुए ग्रन्थरत्नों को एकत्र करवाया। कुछ महत्वपूर्ण पोथियों को क्रय भी किया गया। अविरल यल से अल्पकाल में ही रणवीर कक्ष की पोथियों की संख्या साढ़े पांच हजार के लगभग पहुँच गयी। १९५० ईसवी से पहले हमारे संग्रह में लगभग डेढ़ हजार पोथियां थीं। भारत के विभिन्न अंचलों में अपने अन्वेषक को भेज कर और स्वयमेव अपनी पोथियों को संग्रहालय में भेजने वाले सज्जनों के सहयोग सेPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 472