Book Title: Panchsutrakam
Author(s): Bhuvanchandra, Kirtiratnavijay, Dharmkirtivijay, Kalyankirtivijay
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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एवमपरोवतावं सव्वहा सुगुरुसमीवे, पूजिऊण भगवंते वीयरागे साहू य, तोसिऊण विहवोचियं किवणाई, सुप्पउत्तावस्सगे सुविसुद्धनिमित्ते समहिवासिए विसुद्धजोगे विसुज्झमाणे महया पमोएणं सम्मं पव्वएज्जा लोगधम्मेहंतो लोगुत्तरधम्मगमणेणं । एसा जिणाणमाणा महाकल्लाण त्ति न विराहियव्वा बुहेणं महाणत्थभयाओ सिद्धिकंखिण त्ति ।
पव्वज्जागहणविहिसुत्तं समत्तं ॥ ३ ॥
३. नाऽऽज्ञाविराधनतोऽन्योऽनर्थः । ४. न खल्वाज्ञाराधनातोऽन्यः सिद्धिपथः ।
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