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चसं टीका
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माप्तः, तत्समाप्तौ च पिंचसंग्रह का समाप्ता ॥ अरस्तु ।। ( प्रथाग्रंथ - १००५०) आ श्री पंचसंग्रहटीकानामनो महान ग्रंथ श्रीजामनगरनिवासिपंडित श्रावक दीरालाल हंसराजे पोताना श्रीजैननास्करोदयनामना बापखानामां स्वपरना श्रेयमाटे बापी प्रसिद्ध क
॥ श्रीरस्तु ॥
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॥ समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्री मन्च्चारित्र विजयमुप्रसादात् ॥
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जाग 8
।।१४६६।।
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