Book Title: Panchsangraha Tika Part_4
Author(s): Chandrashi Mahattar, Malaygiri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ पंचसं० टीका |१०|| साधारणानां त्रसबादरप्रत्येकनामानि तत एवैकेंदियजात्यादिप्रकृती बभ्रन् तदेदी एकेंदियजात्यादिप्रकृतिवेदी बंधावलिकाचरमसमये जघन्यां स्थित्युदीरणां करोति. इयमत्र जावनाएकॅप्रियः सर्वजघन्य स्थितिसत्कर्मा हरियादिजातीः सर्वा श्रपि परिपाट्या वन्नाति ततस्तद्वंधानंतर मेकेंयिजातिं बहुमारजते ततो बंधावलिकायाश्चरमसमये तस्या एकेंश्यिजातेर्जघन्यां स्थित्युदीरणां करोति. इद बंधावलिकाया अनंतरसमये बंधावलिकाप्रश्रमसमये बा अपि लता नदीरणामायांति, ततो जघन्या स्प्रित्युदीरणा न प्राप्यते इति बंधावलिकायाश्वरमसमये इत्युक्तं, यावता कालेन प्रतिपक्षभूताः प्रकृतीनाति तावता कालेन न्यूना एकैदियजातेः स्थितिर्भवति, ततः स्तोकतरा प्राप्यते इति प्रतिपक्षभूतप्रकृतिबंधोपादानं एवं स्थावर सूक्ष्मसाधारणानामपि जावना कर्त्तव्या, केवलमेतेषां प्रतिपक्षभूताः प्रकृतयस्वसवादर प्रत्येकनामानो बंधयितव्याः, ' तदागए सेसजाइांति ' तस्मादेकेंदियजावादागतः शेषजातीनां जघन्यां स्थित्युदीर एणां करोति, अत्रापीयं ज्ञावना - एकैडियो जघन्य स्थितिसत्कर्मा एकेंदियजवादुद्धृत्य हींदि - Jain Education International For Private & Personal Use Only नाग ४ ॥१०७२ www.jainelibrary.org

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