Book Title: Panchgranthi Vyakaranam
Author(s): N M Kansara
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ स्वोपज्ञवृत्तिस्थगणपाठपद्यानामनुक्रमणिका 355 वर्चाकुश्च सधावन् तु मूषिकात् .... शतिकरहत्संवत्सरसंवरणानि.....।।२।२।८।३१।। // 2 / 3 / 14 / 6 / 10 // शब्दाभ्रशीकाकलहानटाद्या....॥३।४।१।१।३।। वर्णादितं भूति च कूलतो र्टाऽन्यार्थे...... शमीकुवलकर्कन्धुबदराश्व...।।२।३।१।९।६।। // 3 / 4 / 2 / 1 / 133 // शरकुटीबल्वजसोमदर्भाः....||२।४।५।५।१।। वसेत् प्रियो वा हृदयस्य बन्धनं ..... . शरद्वद्भार्गवे वात्स्ये....।।२।३।१७।३।६।। // 31 / 12 / 8 / 2 // शरन्मनोऽनो हिमवच्चतुः समिक्.. वस्त्रं समाच्छादयतीति कूलैः....||३।४।२।१।१३५।। // 1 / 4 / 13 / 6 / 1 / / वस्त्रे तु गोमूत्र बृहत्यलिञ्जर...।।२।३।१०।५।२॥ शाखोऽधमोत्तमसमानात्...॥३।१।३।६।४।। वंशादि संवेशिविपातकर्मिका:....||३।३।५।२।३॥ शालङ्कायनतैतिलबैल्ववना....॥२।४।५।८।२।। वंशोपजात्या क्रमशोऽपि एकक्...॥२।४।६।३।५॥ शिखावव्याघ्रपादौ स्तः...।।२।३।१७।४।५।। वंश्येन संख्या दि षि सुप्नदीभिः..... शिवबधिरको चार्यश्वेताः....||२।३।१४।५।१॥ // 1 / 4 / 1 / 6 / 1 // शिंशपापलाशखादिरोकाः स्यन्दनो... वाऽकृच्छ्रे सुव्यतिहारे सर्वादीनां....॥२।२।१।२।३।। // 2 / 4 / 4 / 8 / 1 // वाशिष्ठ्ये ब्राह्मणे कोष्टा क्रोष्टं....॥२।३।१७।३।५॥ शीतोष्णे द्वे सूकतौ....।।२।३।१०।५।४।। वाहीक गोष्ठी च पटच्चरो ते....॥३।१।३।४।१॥ शुक्लकृष्णे च याज्यानुवाक्ये...॥१।४।४।३।३।। वाहोपवाहोपनिषत्स्फिगर्ध....||३।२।१२।५।१।। शुण्डिक उपादानश्च...॥३।१।१।१२।६।। विदोर्वकिन्दर्भकिलातधेन्वृष्टि.....।।२।२३।१७।४।१४॥ शुभ्रशलाथलविष्टपुराः स्युः.....॥२।३।१४।६।१३।। विद्या क्षेत्राङ्गवास्तोश्च च्छन्दोतो....॥३।१।३।४।४॥ शौनकवाजसेनेयौ शाङ्गरवो...।।२।४।११।२।१।। विमुक्तदेवासुरसोमपूषन्...||३।३।१२।१।१॥ श्रद्धोत्कर्षोच्चाराः प्रलयजिगीषा...||३।३।१।१।३॥ विरगं च विरागः स्यात् संप्रश्न...... श्रेण्येकपूगश्रवणेन्द्रदेवाः.....|१।४।३।६।८।। // 3 / 2 / 1 / 3 / 6 / / श्रौषडाक्षीफलीविक्लीवार्दा ......||1 / 4 / 2 / 4 / 2 / / विलेपिका स्यान्महिषी पुरोहितो... श्वगर्भिणाभिक्षुकबन्धबन्ध....||२।४।२।६।२।। // 3 / 2 / 14 / 8 / 1 // षद्वित्वयोः षड्गवगौ युगौ च....॥२।३।१।९।५।। विषमस्थः परमस्थः गणपति....॥३।३।५।२।५।। षोडश वाड्वलिं नाम्नि समापा.... . विषमोत्तममगधगहा एकापला.....||३।१।३।६।२।। // 2 / 1 / 4 / 12 / 1 // वीप्सा क्रियाव्यक्तिविशेषणे....।।२।२।१।२।१॥ सङ्कलपुष्कलकुम्भनिधाना...||२।४।५।११।२।। वृत्तार्ययाहुजरीहणादेः...||२।४।६।३।४।। सङ्कोचदेशेऽस्य शुनो विकारे...।।२।२।२।११।२।। वृषशुभ्रवराहाहिशुद्धाग्रा....।।१।४।११।४।१।। सखा च भल्ल: करवीरपालौ...||२।४।६।३।२०।। वैजवाप्याच्युतन्ति च सावित्री...||२।३।१२।७।२॥ सन्तपनोऽथ वियातदशाहो....||२।३।१।१।३।। व्यायाममालावलमेखलाः स्युः......॥३।३।८।३।४॥ समवान्धात् तमः श्रेयः निसः...||१।४।१३।५।२।। व्रीहिशीर्षाच्च मायायाः अर्थार्था....... समवैति समजार्थान् गृह्णाति...||३।२।१।३।९।। // 3 / 3 / 9 / 2 / 1 / / समत्कर्षसमाहारौ समह...||२।३।१२।१३।। शण्डीकसर्वसेनौ च सर्वकेशः......॥३।१।९।६।३॥ सम्बम्भ्रमस्याच्छकलाऽनुकार.....॥१।४।२।४।३।। - शतं विहाराभिगमार्हशक्तिषु...।।३।२।१।३।२॥ संकाशकश्मीरचिरन्तकूटा:....||२।४।६।३।८।।
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