Book Title: Panchgranthi Vyakaranam
Author(s): N M Kansara
Publisher: B L Institute of Indology
View full book text
________________ स्वोपज्ञवृत्तिस्थगणपाठपद्यानामनुक्रमणिका 353 नखनकुलनान्तरीयकनक्र...॥२।१।४।१२।४॥ पिष्टसुपिष्टपिटाकनभाका...॥२।३।१४।५।२।। नटौक्थिकौ च छन्दोगो याज्ञिक...॥३।१।१०।३।१॥ पुरस्तादधस्तादधोऽधः पुरश्चो...॥२।३।६।८।१।। नडमित्रयुगन्धरशिंशपा....।।२।३।१७।३।१॥ पुरोहितग्रामिकधूतदण्डिका:...॥३।३।५।२।१॥ नदी मही काशफरी वाचा...।।३।१।३।५।१॥ पुष्करसदजिगर्तो दुमित्रा...||२।३।१४।६।९।। नमस्तपोऽतद्वरिवश्च मुञ्चति...||३।४।१।१।४।। पूर्वात् सपूर्वादवधारिताच्चान्वेष्टा.... नवयज्ञो भवेदेकः पाकयज्ञ...॥३।३।१०।६।३॥ // 3 / 3 / 37 / 3 / 2 / / नहि वृद्व्यध्रुचितं सह वृकु...।।२।१।६।३।१॥ पूर्वापरान्याद्यतरेतराधरो...॥२।३।६।८।२।। नानाविना शङ्कटशाल वेः सं...।।२।३।१।९।३॥ पूलाशकूलाशपलाशगम्भीर...॥२।४।५।११।३।। नाम्नि धौ वासपेयं पिषौ...।।२।१७।३।१॥ पृथुबालमहद्गुरुसाधवो...॥३।३।४।९।१।। नारीनदीनाम्न इहात्यचो जरत्...||२।३।१४।५।५॥ पृथुमदुकृशस्य परिवृढदृढयो....||२।२।२।१२।। निपत्यरोहिणी प्रेष्या पापी....।।१।४।३।६।१७॥ पैलोदमेध्योदकशुद्धयः स्युः स्तः... निवेः सर्गः उपाद् वासः प्राच्च.... // 2 / 2 / 4 / 1 / 1 / / // 3 / 2 / 1 / 3 / 13 / / प्रज्ञार्चयाद्ये सहवृत्तिश्राद्धे...||३।३।८।३।१।। निष्पत्रतोऽतिव्यथने सपत्रान्...||३।३।१३।७।२।। प्रतिपरोऽनुसंभ्योऽक्षिसंख्या...।।१।४।१३।६।२।। नेडाकाष्ठगोत्राणां...।।२।४।६।३।२३।। (प्रति) श्रुतिवृत्त्युपालम्भने चेदिवार्थे.... नौन्रोः समुद्रादवयापट्टारः...||३।१।५।१।२॥ // 2 / 2 / 1 / 3 / 1 // पक्षाण्डरोमन्मकराः सकर्णकः...||२।४।६।३।१७॥ प्रत्यक्षजुह्वद्वणिजो वयो मनः...॥२॥३।१।१।३।। पञ्चमीहा. द्वितीयाऽपेहे...॥१।४।३।६।१४॥ प्रद्युम्नसाम्बार्जुनदेवशर्मन्...।।२।३।१४।६।७।। पत्नीवन्तु हविर्वांश्च सत्वन्नूपः...||३।३।१२।१।२॥ प्ररथं प्रमृगापरदक्षिणं...॥१।४।१।६।३।। परिगणको रथगणको निपुणः...||३।३।५।५।५॥ प्रवाससंग्रामनिवेशनाष्ठञि...||३।२।२।३।१।। परिधिपाण्डवजीवकिशोरिका...॥२॥३।१४।६।१२॥ प्रस्थोत्तरपदाभ्यां छोडजिह्वाकात्य...॥३।१।३।६।५।। पर्पजालपलव्यासव्यालाश्वत्था...||३।२।११।८।१॥ प्राग्नगरस्य हृत्सिन्धुभग...॥२।२।८।३।४।। पशुर्दशार्हो भरतोऽसुराशनी वाह्नीक... प्राचीनयोगैकपुलस्तिरेभाः...।।२।३।१७।४।३।। // 2 // 3 / 12 / 5 / 1 // प्राज्ञो रक्षोऽप्यसुरमरुतो....||२।३।१।१।१।। पलदीपरिखातत्वान् कर्षट्ट....॥३।१।३।४।५॥ प्रावीण्यनिन्ये नगरादरण्यत...॥३।१।५।१।४॥ पाके शमीभ्यः कुणजाहमूलं....॥२।३।१।९।२॥ प्रिया कान्ता मनोज्ञा च कल्याणी... पात्रे तु स्यातां समितबहुलौ...||१।४।३।५।२।। // 2 / 1 / 2 / 5 / 2 / / पापे कुरल्पेऽभिविधिौ तथा चाङ्... प्रेक्षापुटौ सङ्कटबन्धुके स्तः....।।२।४।६।३।११।। // 1 / 4 / 2 / 3 / 1 // प्लक्षः पशुकः स्यात्...॥२।४।५।६।२।। पापे क्रमे दुःखसुखे तु भुङ्क्ते..... प्लक्षाद्यणोऽन्यस्य फले लुगस्त्री... // 3 / 4 / 1 / 1 / 5 / / . // 2 / 4 / 5 / 6 / 1 // पाशपिटाकजनाः नलधूमाङ्गारगला:... फुलिङ्गताण्डारुणयो ऋचाभः...||२।४।११।२।३।। / / 2 / 4 / 2 / 4 / 3 / / बलवूलतुलपुलउलडुलधडा...॥२।४।६।३।७।। पिङ्गरपिङ्गलकिङ्करदासाः...॥२।३।१७।३।२॥ बलाश्मसंकाशसुतङ्गमादेः....॥२।४।६।३।७।।

Page Navigation
1 ... 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496