Book Title: Pallu ki Prastar Pratimaye
Author(s): Devendra Handa
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 1
________________ पल्लू की प्रस्तर प्रतिमाएँ श्री देवेन्द्र हाण्डा पल्लू का नाम वहाँसे प्राप्त जैन सरस्वती प्रतिमाओंके कारण कला एवं पुरातत्त्व जगत् में सुविदित हैं. परन्तु बहुत कम लोगोंको अवगत होगा कि पल्लू मध्ययुगीन कलाकेन्द्र होने के साथ-साथ एक महत्त्वपूर्ण धर्मस्थान भी रहा है और लगभग दो सहस्राब्दियोंसे मनुष्य तथा प्रकृतिके आघात-प्रतिघात सहन करता हुआ बस चला आ रहा है. प्रस्तुत लेखमें पल्लूसे प्राप्त प्रागवशेषोंके आधारपर इसकी प्राचीनता, मूर्तिकला, धार्मिक महत्ता आदि का ब्योरा विज्ञ पाठकोंके सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है. ' पल्लू की स्थिति पल्लू उत्तरी राजस्थानमें श्री गंगानगर जिलेकी नोहर तहसीलमें एक ऊंचे थेड़पर वसा छोटासा गाँव है जो सरदारशहर-हनुमानगढ़ सड़कपर सरदारशहर से लगभग ४० मील उत्तर हनुमानगढ़ से लगभग ५५ मील दक्षिण तथा नौहर से लगभग ५० मील दक्षिण-पश्चिम कोण में महप्रदेशमें स्थित है । नामकरण स्थानीय अनुश्रुति तथा 'पल्लू की ख्यात' से पता चलता है कि इसका पुराना नाम कलूर गढ़ ( या कोटकलूर) था और उत्तरमध्यकालमें यह जाटोंका एक महत्त्वपूर्ण ठिकाना था । कलूर गढ़के जाटों तथा पूगलके भाटियों में पारस्परिक वैमनस्य था । भाटियोंको नीचा दिखानेके लिए जाटोंने अपनी वीरांगणा राजकुमारी पल्लूका भाटी राजकुमारसे विवाहका षड्यन्त्र रचा। इसमें एक निश्चित योजना के अनुसार 'कंवर कलेवे में भाटी राजकुमार तथा वर यात्रामें आये भाटी सरदारोंको विष दे दिया गया। रात हुई तो राजकुमारी पल्लूको सुहागरात के लिए भेजा गया ताकि इस बात का निश्चय भी हो सके कि राजकुमार मर गया है या नहीं । परन्तु अपने पति के अनिन्द्य एवं अप्रतिम सौन्दर्य तथा अपने पिताकी कुभावना जानकर पल्लूका मन विचलित हो उठा और उसने सारी कथा शेष बचे भाटी वीरोंको कह दी । राजकुमार तथा उसके साथी सरदारों का उपचार कर लिया गया तथा जाटों का सफाया किया जाने लगा । एक एक कर पल्लू के सातों भाई भी मारे १. जैन सरस्वती प्रतिमाओं को प्रकाशमें लाने वाले डा० एल० पी० टेस्सिटरीके बाद पल्लूकी सांस्कृतिक धरोहरकी रक्षा करने वाले व्यक्तियोंमें यदि सर्वप्रमुख नाम देखा जाए तो वह है पल्लू पञ्चायत समिति के भूतपूर्व मन्त्री नौहर निवासी श्री मौजीराम भारद्वाजका जिन्होंने कई वर्ष तक पल्लू में रहकर वहांकी सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक सामग्री की सुरक्षा के लिए अनेक विध प्रयत्न किए एवं वहां के सिक्के तथा मूर्तियां राष्ट्रीय संग्रहालय (नई दिल्ली), राजस्थान पुरातत्त्व विभाग, संगरिया संग्रहालय, गुरुकुल संग्रहालय, झज्झर (हरियाणा) तथा विभिन्न रुचिवान् व्यक्तियों तक पहुँचाये, प्रस्तुत लेखकी अधिकतर सामग्री एवं बहुमूल्य सूचनायें मुझे श्री मौजीरामजी से ही प्राप्त हुई हैं अतः उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only इतिहास और पुरातत्त्व : ११ www.jainelibrary.org

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