________________ 118 अनुसन्धान 44 पाखण्डीओ छे, छतां तेओर्नु केटलुक अनुष्ठानादि बौद्धमतने सम्मत पण छे. ते छतां पण, तेओनी अशुद्ध दृष्टिने कारणे तेओर्नु समग्र दर्शन ज मिथ्या छे.'' छेल्ले, घणा जैन आगमोना पाठो साथे सादृश्य धरावता आगळ कहेला पाली आगमना पाठो तथा तेनी टीकाओ-कदाच, बौद्ध साधुओ तथा जैन मुनिओना कोई गणो वच्चेना वास्तविक सम्पर्कने जणावे छे. में मारा १९९५ना लेखमां जणाव्यु ज छे के - टीकाकार धम्मपाले जैन साधुओ, जे वर्णन कर्यु छे ते शिल्पोमां मळतां वर्णनो साथे सम्मत छे - ते जणावे छे के बौद्धो काञ्चीमा रहेता जैनमुनिओना गणोने जाणता हशे. वळी, बौद्ध टीकाकारोना समय सुधी पण थेरवादी बौद्धो, जैनोना पञ्च महाव्रतोनी वात न करतां चातुयाम संवरने ज स्वीकारे छे - ते आपणने एवं विचारवा - तर्क करवा प्रेरे छे के दक्षिणमां रहेल बौद्धोने एवा जैन मुनिओनो सम्पर्क हशे के जेओ त्यारे पण चातुयाम संवरने पाळता होय. WARSAW INDOLOGICAL STUDIES - VOLUME 2, Essays in Jaina Philosophy and Religion Catuyama - Samvara in the Pali Canon लेखनो अनुवाद. अनुवाद : मुनि कल्याणकीर्तिविजय Dept. of S&SE Asian Studies University of California 7303 Dwinelle Hall Bekeley, CA 94270-2540 1. दीघनिकाय अट्ठकथा 1 : 168 / 2. Jaini, Padmanabh S. : JAIN MONKS FROM MATHURA: LITERARY EVIDENCE FOR THEIR IDENTIFICATION ON KUSANA SCULPTURES.' Bulletin of the School of Oriental and African Studies [University of LONDON] 58 (1995) 479-494. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org