Book Title: Paia Padibimbo
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ पुरोवाक् मुनि विमलकुमारजी प्रणीत दो प्राकृत काव्य - 'पाइयपच्चूसो और पाइयपडिबिंबो' मैंने पढ़ा है । इसे पढ करके मुझे बहुत हर्ष हुआ । मैं इसलिए आनन्दित हूं कि बीसवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में एक जैन मुनि द्वारा लिखित दो प्राकृत काव्य प्राकृत साहित्य में अलंकारस्वरूप होगा । जैसे पुराने जमाने में मुनि लोग लिखते थे वैसे विमलकुमारजी ने भी लिखा है । इसलिए मैं मुनिश्री की प्रशंसा करता हूं । इस काव्य ग्रन्थ को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि वही हजारों साल पहलेवाला काव्य पढ रहा हूं । अतः हम सभी कृतज्ञ हैं मुनिश्री के । आशा करता हूं कि भविष्य में भी आप ऐसा काव्य ग्रन्थ लिख कर प्राकृत साहित्य को समृद्ध करेगें । इन दो प्राकृत काव्य ग्रन्थों में छह आख्यान हैं । ये सभी आख्यान प्राकृत और जैन साहित्य के उपजीवी हैं अर्थात् जैन धर्म और अनुशासन में यह आख्यान भाग बहुउपयोगी है । अतः मुनि विमलकुमारजी को मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूं | पाइपच्चूसो में तीन आख्यान हैं (१) बंकचूलचरियं (२) पएसीचरियं (३) मियापुत्तचरियं ये तीनों आख्यान जैन साहित्य में प्रसिद्ध हैं । 'बंकचूल चरियं' नौ सर्गों में समाप्त हुआ है । आख्यान भाग बहुत ही प्रसिद्ध है, अत: आख्यान भाग देने की जरूरत नहीं है । लेकिन इसका वैशिष्ट्य ऐसा है जो आजकल के काव्य और प्राकृत काव्य में दिखाई नहीं देता । मुनिश्री ने जिस छंद में उल्लिखित हुआ है उसका भी उल्लेख किया है । जैसे - आर्या और इन्द्रवज्रा आदि । और भी एक विशेषता है मुनिश्री ने बीच-बीच में प्राकृत सूत्रों का उल्लेख कर किस प्राकृत शब्द को कैसे बनाया वह भी पाद टीका में दिया है । इसलिए ये काव्य प्राकृत भाषा सीखने के लिए बहुत मूल्यवान् हो गये हैं । केवल आख्यान भाग नहीं अपितु प्राकृत भाषा का भी ज्ञान होगा । इसके साथ-साथ में हिन्दी अनुवाद भी दिया है । शिक्षक पाठमाला की तरह काम करेंगें अर्थात् बिना शिक्षक के ये काव्य पढ़कर आदमी लोग प्राकृत भाषा में ज्ञान लाभ कर सकते हैं । है इसलिए ये काव्य एक स्वयं

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