________________
(गुजरात टाइम्स), 'इकवीसमी सदीनुं विश्व' (गुजरात टाइम्स), एकवीसमी सदी, बालसाहित्य', 'अदावत विनानी अदालत' (चं.ची. महेता के रूपकों का सम्पादन), 'एक दिवसनी महाराणी' (डेमोन रनियन की कहानियों का चं.ची. महेता द्वारा किया गया अनुवाद)। आप द्वारा सम्पादित पुस्तकों का व्याप देखा जाय तो सहज ही आपका रसक्षेत्र कितना विशाल है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। प्रत्येक सम्पादन में आपकी सूझ-बूझ, दूरदृष्टि एवं बारीकी दृष्टव्य है। ___ कुमारपाल देसाई ने आफ्रिकन लेखक ऑस्टिन बुकेन्या की कम लोकप्रियता वाली परन्तु साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान नाट्यकृति का अनुवाद गुजराती भाषा में 'नववधू' के नाम से किया है। प्रस्तावना में लिखे लेख द्वारा आपने लेखक और उसकी कृति का साहित्यिक परिचय करवाते हुए कृति का रसास्वादन कराया है। मूल सर्जक से सहवास कर आपने साम्प्रत आफ्रिकन नाटक की पश्चाद्भूमि को भी प्रस्तुत किया है। ___ ई. सन् 1969 में पिताश्री जयभिक्खु का निधन हुआ। उस समय कुमारपाल की आयु 27 वर्ष थी। परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी। उस समय जयभिक्खु गुजरात समाचार में 'ईंट अने इमारत' स्थायी स्तम्भ लिख रहे थे। उन्होंने इस स्थायी स्तम्भ की शुरुआत सन् 1958 से की और वह अत्यन्त लोकप्रिय हुई। अखबार के सम्पादक ने आपसे भेंट कर पिता द्वारा लिखे जा रहे स्थायी स्तम्भ को लिखते रहने का विशेष आग्रह किया। आपकी हिचकिचाहट सहज थी, परन्तु सम्पादक के विशेष आग्रह पर निःसंकोच अपनी स्वीकृति दे दी। प्रारम्भ के चार-पाच स्तम्भ बिना नाम के ही छपे। उन लेखों को अद्भुत प्रतिसाद मिला। तत्पश्चात् ही आपने अपना नाम प्रकट किया। तब से लेकर आज तक अखण्ड दीप की भाँति यह स्तम्भ नियमित लिख रहे हैं। पिता-पुत्र द्वारा अर्ध सदी से भी अधिक समय (60 वर्ष) तक नियमित रूप से कोई स्थायी.स्तम्भ लिखा गया हो, ऐसा गुजराती पत्रकारत्व क्षेत्र में कोई उदाहरण परिलक्षित नहीं
(12)