Book Title: Operation In Search of Sanskrit Manuscripts in Mumbai Circle 4
Author(s): P Piterson
Publisher: Royal Asiatic Society

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Page 293
________________ 114 EXTRACTS FROM 399. पंथोष्टाविंशतिशतानुमितः सर्वसंज्ञया । जीयादयं बुधश्रेणिवाच्यमानो निरंतरम् ॥ १७ ॥ इति श्रीविंशतिस्थान कवितारामृतसंग्रहः संपूर्णः ॥ ___No. 1333. विधिमार्गप्रपा-जिनप्रभसूरिः। आ°-नमिय महावीरजिणं सम्म सरिउं गुरूवएस च । सावयमुणिकिचाणं समायारी लिहामि अहं ।। १॥ -जिणदत्त सूरिसंताणतिलयजिणसिंहसूरिसीसेण । गुत्तिरसकिरियाणप्पमिए विक्रमनिवइवरिसे || ९ ॥ विजयदसमीइ एसा सिरिजिणपहसूरिणा समायारी । सवरोवयारहेउं समाणिया कोसलानयरे ॥ १० ॥ सिरिजिणवल्लहजिणदत्तसूरिजिणचंदजिणवइमुणिदा । सुगुरुजिणेसरजिणसिंहसूरिणो मह पसीयंतु ।। ११ ॥ वाइयतयलाएणं वाणायरिएण अह्मसीसेण । उदयाकरण गणिणा पढ मायरिसे कया एसा ॥ १२ ॥ जीए पसायाउ नरा सुकईसरसत्थवल्लहा हुंति । सा सरसई य पउमावई य मे दिंतु सुयरिद्धिं ॥ १३ ।। ससिसूरपईवा जाव भुवणभवणोदरं पभार्सेति । एसा समायारी सफलिज्जउ ताव सूरीहिं ॥ १४ ॥ पञ्चक्खरगणणार पाएण कयं पमाणमेईए । च उहत्तरीसमहिया पणतीससया सिलोयाणं ॥ १५ ॥ विहिमग्गपवानामं सामायारी इमा चिरं जयउ । पल्हायंती हि ययं सिद्धिपुरीपंथियजणाणं ॥ १६॥ संवत् १६६६ अंकतोपि ग्रंथायं ३५७४

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