Book Title: Operation In Search of Sanskrit Manuscripts in Mumbai Circle 4
Author(s): P Piterson
Publisher: Royal Asiatic Society

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Page 334
________________ PURCHASED FOR GOVERNMENT. 155 __No. 1447. परमात्मप्रकाशः सटीक:--मू योगीन्द्रदेवः । मू आ० जे जाया झाणग्गियए कम्मकलंक डहेवि । णिच्चनिरंजणणाणमया ते परमप्पणवेवि ।। १ ॥ मू० च° परमपयगयाणं भासउ दिव्वकाउ मणसि मुणिवराणं मुक्खदो दिव्वजोउ | विसयसुहरयाणं दुल्लहो जो हु लोये जयउ सिवसरूवो केवलो कोवि बोहो ॥ ३४५ ॥ No. 14:48. परीक्षामुखं सटीकम्-मू° माणिक्यनन्दिः । आ०-नतामरशिरोरत्नप्रभाप्रोतनखत्विषे । नमो जिनाय दुर्वारमारवीरमदच्छिदे ।। १ ।। अकलंकवचोंभोधेरुधे येन धीमता। न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनंदिने ॥ २॥ प्रभेदुवचनोदारचंद्रिकाप्रसरे सति | मादृशाः क नु गण्यते ज्योतिरिंगणसन्निभाः ।। ३ ॥ तथापि तद्दचोऽपूर्वरचनारुचिरं सताम् । चेतोहरं भृतं यद्वन्नद्या नवघटे जलम् ॥ ४ ॥ वैजेयप्रियपुत्रस्य हीरपस्योपरोधतः । शांतिषेणार्थमारब्धा परीक्षामुखपंजिका ॥ ५ ॥ श्रीमन्न्यायावारपार न्यायपारावार]स्यामेयप्रमेयरत्नसरस्यावगाहनमव्युत्पन्नैः कर्तुं न पार्यत इति तदवगाहनाय पोतप्रायमिदं प्रकरणमाचार्यः प्राह । तत्प्रकरणस्य च संबंधादित्रयापरिज्ञाने सति प्रेक्षावतां प्रवृत्तिर्न स्यादिति तन्नयानुवादपुरःसरं वस्तुनिर्देशपरं प्रतिज्ञाश्लोकमाह।

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