Book Title: Niyamsar Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 3
________________ ९हजार ६०० प्रथम संस्करण हिन्दी : ५ हजार (१४ नवम्बर २०१० ई.) वीतराग-विज्ञान (हिन्दी-मराठी) के सम्पादकीयों के रूप में कुल : १४ हजार ६०० क्षयोपशम बहुत है पण्डित हुकमचन्द के बारे में तो हमने कहा था कि उसका क्षयोपशम बहुत है, बहुत है । वर्तमान तत्त्व की प्रभावना में उसका बड़ा हाथ है, स्वभाव का भी सरल है। अच्छा मिल मूल्य : २० रुपये गया, टोडरमल स्मारक को बहुत अच्छा मिल गया। गोदीका के भाग्य से मिल गया। गोदीका पुण्यशाली है न, सो मिल गया। तत्त्व की बारीक से बारीक बात पकड़ लेता है, पण्डित हुकमचन्द बहुत ही अच्छा है। ___- आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी समयसार का शिखर पुरुष समयसार वाचना में आपके समयसार व्याख्यान सुनकर हृदय बहुत ही गद्गद् हो गया और उससे बहुत धर्मलाभ भी प्राप्त हुआ। मुझे तो ऐसा लगता है कि जैनदर्शन का मर्म टाइपसैटिंग : | 'समयसार' में भरा है और समयसार' का व्याख्याता आज त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स, | आपसे बढकर दूसरा नहीं है। । आपको इसका बहुत गूढ-गम्भीर ज्ञान भी है और उसके प्रतिपादन की सुन्दर शैली भी आपके पास है। यदि आपको 'समयसार का शिखर पुरुष' भी आज की | तिथि में घोषित किया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। आज के समय में जब एक-दो बच्चों को भी पालना (संस्कारित करना) बहुत कठिन है, आपने सैकड़ों बालकों को जैनदर्शन का विद्वान बनाकर समाज की महती सेवा की| है, जो इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखी जाती रहेगी। __ आप चिरायु हों, स्वस्थ रहें और जैनधर्म की महान प्रभावना मुद्रक : करते रहें तथा सम्पूर्ण समाज भी एकजुट होकर आपके प्रवचनों प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड को बड़ी सद्भावना से सुनकर लाभान्वित होती रहे - यह मेरी हार्दिक अभिलाषा है। आशीर्वाद । - आचार्य विद्यानंद मुनि बाईस गोदाम, जयपुर ८

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