Book Title: Nitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Author(s): Devendramuni
Publisher: University Publication Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ स्वकीय मानव का एक विशिष्ट लक्षण है - मननशीलता । अरस्तु ने इसी को लक्ष्य में रखकर कहा - Man is a thinking animal - मानव चिन्तनशील प्राणी है। चिन्तन-मनन कर किसी भी विषय के तलछट तक पहुँचकर निर्णय करना उनका स्वभाव है। जब से आदिमानव अन्य मानवों के सम्पर्क में आया, उनके साथ उसका व्यवहार प्रारम्भ हुआ, वन सभ्यता से नगर सभ्यता की ओर बढ़ा, तभी से मानव के व्यक्तिगत चिन्तन ने सामाजिकता की ओर मोड़ लिया । वह इस बात के लिए प्रयत्नशील हो गया कि अन्य लोगों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाना चाहिए, जिससे उनसे सहयोग की प्राप्ति हो तथा साथ ही उन्नति प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त हो और सबसे बड़ी बात कि वह व्यवहार सभी को प्रिय, मान्य तथा उचित भी लगे । यह 'उचित', 'चाहिए' और 'सर्वसमाजमान्य' ही नीतिशास्त्र के आधारबिन्दु हैं। इन्हीं पर नीति का सम्पूर्ण भव्य भवन आधृत है। इन्हीं तीन बिन्दुओं ने विकसित होकर नीतिशास्त्र का विशाल रूप ग्रहण किया है । इस 'उचित' का आधार नैतिक मान्यताएँ तो है ही, साथ ही मनुष्य की अन्तर्दृष्टि भी इसमें निर्णायक भूमिका अदा करती है । जहाँ तक नैतिक मान्यताओं का प्रश्न है, ये विभिन्न समाजों में सदा से भिन्न-भिन्न रही हैं और आज भी भिन्न हैं तथा आगे भी इनमें भिन्नता रहेगी। फिर युग परिवर्तन के साथ भी नैतिक मान्यताओं में परिवर्तन-परिवर्द्धन भी होते हैं । ये परिवर्तन विश्वास और मनःस्थितियों में भी परिलक्षित होते

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 526