________________ श्राआनन्द प्राआकाशन MAITrawariviaviM H ANI 264 धर्म और दर्शन VASNA करते रहना चाहिए / क्योंकि यथार्थ नैतिक जीवन में एकान्त नैश्चयिक दृष्टि अथवा एकांत व्यवहार दृष्टि अलग-अलग नहीं रहकर कार्य नहीं करती वरन् एक साथ कार्य करती है। नैतिकता के आन्तपक्ष और वाह्यपक्ष दोनों ही मिलकर समग्र नैतिक जीवन का निर्माण करते हैं। नैतिकता के क्षेत्र में आन्तर शुभ और बाह्य व्यवहार नैतिक जीवन के दो भिन्न पहलू अवश्य हैं लेकिन अलग अलग तथ्य नहीं हैं। उन्हें अलग-अलग देखा जा सकता है लेकिन अलग-अलग किया नहीं जा सकता।' अन्त में हम एक जैनाचार्य के शब्दों में यही कहना चाहेंगे कि निश्चय राखी लक्ष मां, पाले जे व्यवहार / ते नर मोक्ष पामशे संदेह नहीं लगार // FORE आनन्द-वचनामृत 0 प्रार्थना बुद्धि और तर्क का विषय नहीं किंतु श्रद्धा और भावना का विषय है बुद्धिमानों के लिए प्रार्थना अबूझ पहेली है, किंतु श्रद्धालु भक्त के लिए वह गुड़ की मीठी डली है। यह मत देखो कि प्रार्थना लंबी है या छोटी, संस्कृत, प्राकृत में है या भाषा में, किंतु यह देखो कि आपकी तन्मयता उसमें होती है या नहीं। प्रार्थना तो पिता के साथ बच्चे की बात जेसी सरल और भावनात्मक होनी चाहिए। / प्रार्थना की जो भी विधि, जो भी पाठ हमें शुद्ध चैतन्य के निकट ले जाये वही अच्छा है। 0 प्राकृतिक और भौतिक दुनिया में पशु मनुष्य से अधिक समर्थ है, किन्तु बौद्धिक और भावनात्मक दुनिया में मनुष्य पशु से हजार गुना श्रेष्ठ है। जो मनुष्य होकर भी यदि बुद्धि एवं भावना से हीन है तो वह फिर अपने को पशु से श्रेष्ठ कैसे कह सकता है ? U अज्ञान का अर्थ है मिथ्याधारणा गलत धारणा / मुर्ख को लोग कहते हैं गधा है / गधा कौन? ग-अर्थात् गलत धा-अर्थात् धारणा। गलत धारणा, मिथ्याज्ञान, अज्ञान, मूर्खता ये सब 'गधा' के सूचक हैं। 0 संस्कृत व्याकरण के अनुसार 'देवता' शब्द स्त्रीलिंग है। इसलिए संतों और तपस्वियों को 'देवता' की कामना-उपासना नहीं करना चाहिए, किन्तु जो देवताओं का भी आराध्य है, उस 'परम पुरुष' की उपासना में ही लगना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org