Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan Author(s): Arunvijay Publisher: Mahavir Research Foundation View full book textPage 9
________________ अपनी ऊंचाई को छू चुके थे। इन दोनों का काल काफी बड़ी मात्रा में बीतता गया और आज यन्त्र युग की प्राधान्यता सर्वत्र भासमान हो रही है। अब सभी क्षेत्रों में जितनी यन्त्रों की भरमार दृष्टिगोचर हो रही है शायद उसके मुकाबले मंत्रों का प्रमाण और प्रभाव दोनों ही काफी हद तक कमजोर दिखाई दे रहा है। मन्त्रों के प्रयोग अब १०% या २०% रहे होंगे? लेकिन यन्त्रों का प्रयोग अव ८०% बढ़ता जा रहा है। मन्त्र बल से प्राचीनकाल में कोई इक्का-दुक्का लोग सिद्धि प्राप्त करके दूर-अन्तर से बातें कर सकते थे। लेकिन आज के विज्ञान युग ने सेल फोन लोगों के हाथों में ऐसे पकड़ा दिये हैं कि मानों रस्ते चलते बच्चों के खिलौने की तरह से आम आदमी उपयोग करने लग गया है। आध्यात्मिक मंत्रों का प्रभाव - सेंकड़ों किसम के मंत्रों में आध्यात्मिक मंत्रों का प्रमाण और प्रभाव भले ही कम हो लेकिन मानव मन को शान्ति प्रदान कराने में वे पर्याप्त है। भौतिकपौवालिक सुख समृद्धि मानव ने चाहे मंत्र साधना के बल पर पाई हो या फिर विज्ञान के यन्त्रों के बल पर पाई हो लेकिन मानव आज भी चिर शान्ति प्राप्त नहीं कर पाया है। यह कटु सत्य आज भी हमें स्वीकारना ही पड़ता है। विघ्न-संकट निवारक, दुःखदर्दनाशक, सुख-समृद्धि एवं ऋद्धि-सिद्धिदायक ऐसे मन्त्र प्रायः भूत-भौतिक जगत् से जुड़े हुए हैं। देवी-देवताओं से सूत के धागे की तरह बंधे हुए एवं जुड़े हैं। उच्च या निम्न श्रेणी के कई देवी-देवता ऐसे लाखों मन्त्रों से बंधे हुए, जुड़े हुए होने से वे इन मन्त्रों के अधिष्ठाता होते हैं। अतः स्मर्ता के दुःखों को हरे, संकट विघ्नों को हरे... और सुख समृद्धि प्रदान करावे। अधिकांश व्यंतर जाति के देवी-देवता ऐसे मंत्रों के अधिष्ठाता रहते हैं। शास्त्रों में यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि चौवीसों तीर्थंकर भगवन्तों के सभी यक्ष-यक्षिणी एवं अधिष्ठायकादि एवं, महालक्ष्मी, सरस्वती देवी, अम्बिका देवी, माणिभद्रवीर, घण्टाकर्ण वीर इत्यादि अनेक वीर या ५२ वीर आदि व्यन्तर निकाय के देवी-देवता हैं। उनके सेंकड़ों किसम के मंत्र-तंत्र यंत्रादि है। मंत्रों से इनका आव्हानादि किया जाता है। इनके सामने भक्त याचना भी करते ही रहते हैं। याचनाएं सारी भूत-भौतिक एवं पौत्रालिक ही होती है। तथा इन देव-देवीयों की शक्ति एवं क्षमता भी पौत्रालिक साधन-सामग्रियां देने तक ही सीमित होती हैं इसलिए सुख-समृद्धि की साधन सामग्रियां ये देते होंगे तथा प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में ये सहायक बनते होंगे। प्रत्यक्ष सहायक बनना तो शायद २ या ५ प्रतिशत ही संभव होगा लेकिन अप्रत्यक्ष अर्थात् परोक्ष रूप में ये भक्तों के सहायक होते होंगे। बस, इसी कारण आध्यात्मिक शान्ति प्रदान कराना इनके वश की बात नहीं लगती है। इनकी भी अपनी एक सीमा है। सुख-दुःख निमित्तक अनादि संस्कार - अनादि कालीन मोह कर्म एवं मिथ्यात्व वासित संसारी VIIPage Navigation
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