Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

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Page 5
________________ किया गया। उनकी परम्परा के आचार्यों ने उनके नैतिक मूल्यों की ज्वाला को प्रज्वलित रखा व आज का काँगड़ा तीर्थ एक महान् विशिष्ट एवं नैसर्गिक सौन्दर्य का प्रतीक बन गया है। कलि-काल कल्पतरु पंजाब केसरी परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज ने पुरातत्त्वाचार्य श्री जिन विजयजी द्वारा सम्पादित "विज्ञप्ति त्रिवेणी" ग्रन्थ के आधार पर कांगड़ा तीर्थ की खोज प्रारम्भ की थी व विक्रम सम्वत १९८० में होशियारपुर (पंजाब ) से छरी पालित पद यात्रा संघ लेकर कांगड़ा तीर्थ पधारे थे। ___ हमारे विशेष अनुरोध पर जैन-साहित्य, संस्कृति व धर्म के प्रकाण्ड विद्वान् साहित्य वाचस्पति श्री भंवरलालजी नाहटा ने नगरकोट तीर्थ सम्बन्धी शोध कार्य करके अपने अथक प्रयत्नों से यह पुस्तक लिखी है। उनका यह कार्य स्तुत्य है। उन्हें हमारा साधुवाद । हमारे पूज्य पिता प्रातः स्मरणीय स्वर्गीय बंसीलालजी कोचर (प्रसिद्ध नाम श्री बंसीलालजी लुगीवाला) का यह जन्म शताब्दी वर्ष है, उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए यह पुस्तक उन्हीं की स्मृति में प्रकाशित की जा रही है। वे वर्षों से आचार्य श्री १००८ विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज के सम्पर्क में रहे व उनकी प्रेरणा से उन्होंने अपने प्रिय मित्र स्वर्गीय रोशनलालजी कोचर के साथ अमृतसर में दादाबाड़ी की स्थापना का कार्य किया, व श्री रोशनलालजी कोचर के देहावसान के पश्चात् वे स्वयं गुरु महाराजों की प्रेरणा व कृपा से वर्षों तक दादाबाड़ी को निरन्तर विकसित करते रहे व धर्मानुरागी श्रावकों के साथ धर्म-कर्म करते रहे। ९ जनवरी १९७५ को प्रभु नाम स्मरण करते हुये उन्होंने अपनी देह त्याग दी। उनकी सद्भावना, भाईचारा की प्रवृति एवं दीन दुखियों की सेवा भावना हम सबको अनुकरणीय हो, इस भावना के साथ यह पुस्तक जैन श्री संघ को सादर भेंट। सोहनलाल कोचर कलकत्ता ट्रस्टी अक्षय तृतीया बी० दौलत चेरिटेबल ट्रस्ट सं० २०४८ कलकत्ता-७००००१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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