Book Title: Munisuvratswami Charitam
Author(s): Vinaychandrasuri, Vikramvijay, Bhaskarvijay, Jayantvijay
Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala
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श्रीशङ्केश्वरपार्श्वनाथाय नमः । श्री आत्म - कमल - लब्धिसूरीश्वरेभ्यो नमः ।
चन्द्रगच्छीय-आचार्यश्रीविनयचन्द्रसूरिनिर्मितम् श्रीमुनिसुव्रतखामिचरितम् ।
प्रथमः सर्गः। स जिनः पातु यस्यांस -स्थलकुन्तलवल्लयः । नित्यं फलन्ति कल्याण-फलभारैर्विवेकिनाम् ॥ १॥ अश्वतुष्टिरभूद्यस्य, सरसैर्देशनायवैः । भृगुकच्छपुरे क्षेत्रे, तं वन्दे मुनिसुव्रतम् ॥ २॥ अञ्जनद्युतिरनञ्जनमूर्तिः, कामभित्प्रणतकामविधायी।
सुव्रतो जयति माननिहन्ता, व्यक्त-विंशतिशरासनमानः ॥३॥ स मां वीरजिनः पातु, महामोहमहाबलम् । जित्वा येनाऽद्वितीयेन, जगृहे सिद्भिवल्लभा ॥४॥ येषां नवनिधानानि, पुरस्थानीव रेजिरे । नववर्णाम्बुजव्याजाते, जिनाः स्युः श्रिये सताम् ॥ ५॥ अकृत्रिमपदश्रेणिं, निःश्रेणि संयमौकसः । प्रस्तौमि गौतमोपर्श, सिद्धान्तं बुद्धिशुद्धये ॥ ६॥
'मावलं क०।
श्रीमु०१
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