Book Title: Mularadhna Aetihasik Sanskrutik evam Sahityik Mulyankan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 7
________________ वायु तथा वनस्पति (Vegetation) के भेदों में बीज, अनन्तकायिक, प्रत्येककायिक, वल्ली, गुल्म, लता, तृण, पुष्प एवं फल बादि को लिया गया है जो वर्तमान प्राकृतिक भूगोल के भी अध्ययनीय विषय है। प्राकृतिक दृष्टि से प्रदेशों का वर्गीकरण कर उनका नामकरण इस प्रकार किया गया हैदेश' – जलबहुल प्रदेश | १. अनूप २. जांगल देश' -- वन-पर्वत बहुल एवं अल्पवृष्टि वाला प्रदेश 1 साधारण देश' उक्त प्रथम दो लक्षणों के अतिरिक्त स्थिति वाला प्रदेश । ३. राजनैतिक भूगोल - राजनैतिक भूगोल वह कहलाता है, जिसमें प्रशासनिक सुविधाओं की दृष्टि से द्वीपों, समुद्रों, देशों, नगरों-ग्रामों आदि की कृत्रिम सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं। इस दृष्टि से मूलाराधना का अध्ययन करने से उसमें निम्न देशों, नगरों एवं ग्रामों के नामोल्लेख मिलते हैं देशों में बर्बर', चिलातक' पारसीक', अंग, वंग' एवं मगध' के नाम मिलते हैं । जैन- परम्परा के अनुसार ये देश कर्मभूमियों के अन्तर्गत वर्णित हैं । ग्रन्थकार ने प्रथम तीन देश म्लेच्छदेशों में बताकर उन्हें संस्कारविहीन देश कहा है । " महाभारत में भी बर्बर को एक प्राचीन म्लेच्छदेश तथा वहाँ के निवासियों को बर्बर कहा गया है" । नकुल ने अपनी पश्चिमी दिग्विजय के समय उन्हें जीतकर उनसे भेंट वसूल की थी" एक अन्य प्रसंग के अनुसार वहाँ के लोग युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में भेंट लेकर आए थे। प्रतीत होता है कि यह बर्बर देश ही आगे चलकर अरब देश के नाम से प्रसिद्ध हो गया । उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका के मूलदेव कथानक में एक प्रसंगानुसार सार्थवाह अचल ने व्यापारिक सामग्रियों के साथ पारसकुल की यात्रा जस मार्ग द्वारा की तथा वहाँ से अनेक प्रकार की व्यापारिक सामग्रियाँ लेकर लौटा था | प्रतीत होता है कि यही पारसकूल मूलाराधना का पारसीक देश है। वर्तमान में इसकी पहिचान ईराक-ईरान से की जाती है क्योंकि ये देश आज भी Percian Gulf के देश के नाम से प्रसिद्ध हैं । 1 चिलातक देश का उल्लेख बर्बर एवं पारसीक के साथ म्लेच्छ देशों में होने से इसे भी उनके आसपास ही होना चाहिए । हो सकता है कि वह वर्तमान चित्राल हो, जो कि आजकल पाकिस्तान का अंग बना हुआ है । अंग एवं मगध की पहिचान वर्तमानकालीन बिहार तथा बंगदेश की पहिचान वर्तमानकालीन बंगाल एवं बंगलादेश से की गई है। नगरों में पाटलिपुत्र ५, दक्षिण-मथुरा ", मिथिला, चम्पानगर " कोसल अथवा अयोध्या" एवं श्रावस्ती प्रमुख हैं । ये नगर प्राच्य भारतीय वाङ्मय में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । जैन, बौद्ध एवं वैदिक कथा-साहित्य तथा तीर्थंकरों तथा बुद्ध, राम एवं कृष्ण-चरित में और भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं का कोई-न-कोई प्रबल पक्ष इन नगरों के साथ इस भाँति जुड़ा हुआ है कि इनका उल्लेख किए बिना वे अपूर्ण जैसे ही प्रतीत होते हैं। अन्य सन्दर्भों में कुल", ग्राम" एवं नगर के उल्लेख आए हैं । ग्रामों में 'एकरथ्या ग्राम" का सन्दर्भ आया है । सम्भवतः यह ऐसा ग्राम होगा जो कि एक ही ऋजुमार्ग के किनारे-किनारे सीधा लम्बा बसा होगा । समान स्वार्थ एवं सुरक्षा को ध्यान में रखकर ग्रामों, नगरों अथवा राज्यों का जो संघ बन जाता था, वह कुल कहलाता था । १-३. दे० गाथा ४५० की टीका, पृ० सं० ६७७. ४-६. दे० गाथा सं० १८६९ की टीका, पृ० सं० १६७३-७४, १०-११ वही १२. महाभारत - सभापर्व, ३२/१७. १३. महाभारत - सभापर्व, ५१ / २३. १४. १५. दे० गाथा सं० ४४ की टीका, पृ० १४४, तथा गाथा सं० २०७४. दे० गाथा सं० ६० की टीका, पृ० १८७. प्राकृत प्रबोध - ( मूलदेव कथानक ), चौखम्भा, वाराणसी । १६. १७. दे० गाथा सं० ७५२. १८. दे० गाथा सं० ७५९. १६. दे० गाथा सं० २०७३. २०. दे० गाथा सं० २०७५ की टीका, पृ० १०६७. २१-२३. गाथा सं० २९३. २४. गाथा ११२८. - जंन इतिहास, कला और संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only १३ www.jainelibrary.org

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