Book Title: Mularadhna Aetihasik Sanskrutik evam Sahityik Mulyankan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 10
________________ मानव-शरीर में २ मांसरज्जु हैं । ६. मानव-शरीर में ७ त्वचाएं, ७ कालेयक (मांसखण्ड) एवं ५० लाख-करोड़ रोम हैं । पक्वाशय एवं आमाशय में १६ आंतें रहती हैं। दुर्गन्धमल के ७ आशय हैं। मनुष्य-देह में ३ स्थूणा (वात पित्त श्लेष्म), १०७ मर्मस्थान और ६ वणमुख हैं। मनुष्य-देह में वसानामक धातु ३ अंजुली प्रमाण, पित्त ६ अंजुली प्रमाण एवं श्लेष्म भी उतना ही रहता है। __ मनुष्य-देह में मस्तक अपनी एक अंजुली प्रमाण है। इसी प्रकार मेद एव ओज अर्थात् शुक्र ये दोनों ही अपनी १-१ अंजुली प्रमाण हैं। मानव-शरीर में रुधिर का प्रमाण आढक, मूत्र १ आढक प्रमाण तथा उच्चार-विष्ठा ६ प्रस्थ प्रमाण हैं।' मानव-शरीर में २० नख एवं ३२ दांत होते हैं। मानव-शरीर के समस्त रोम-रन्ध्रों से चिकना पसीना निकलता रहता है। मनुष्य के पैर में कांटा घुसने से उसमें सबसे पहले छेद होता है फिर उसमें अंकुर के समान मांस बढ़ता है फिर वह कांटा नाड़ी तक घुसने से पैर का मांस विघटने लगता है, जिससे उसमें अनेक छिद्र हो जाते हैं और पैर निरुपयोगी हो जाता है। यह शरीर रूपी झोंपड़ी हड्डियों से बनी है। नसाजालरूपी बक्कल से उन्हें बांधा गया है, मांसरूपी मिट्टी से उसे लीपा गया है और रक्तादि पदार्थ उसमें भरे हुए हैं।' माता के उदर में वात द्वारा भोजन को पचाया जाकर जब उसे रसभाग एवं खलभाग में विभक्त कर दिया जाता है तब रसभाग का १-१ बिन्दु गर्भस्थ बालक ग्रहण करता है । जब तक गर्भस्थ बालक के शरीर में नाभि उत्पन्न नहीं होती, तब तक वह चारों ओर से मातभुक्त आहार ही ग्रहण करता रहता है। १८. दांतों ले चबाया गया कफ से गीला होकर मिश्रित हुआ अन्न उदर में पित्त के मिश्रण से कडुआ हो जाता है।" भ्रूण-विज्ञान-(Embroyology)-भौतिक एवं आध्यात्मिक विद्या-सिद्धियों के प्रमुख साधन-केन्द्र इस मानव-तन का निर्माण किस-किस प्रकार होता है ? गर्भ में वह किस प्रकार आता है तथा किस प्रकार उसके शरीर का क्रमिक विकास होता है, उसकी क्रमिक-विकसित अवस्थाओं का ग्रन्थकार ने स्पष्ट चित्रण किया है। यथा १. कललावस्था-माता के उदर में शुक्राणुओं के प्रविष्ट होने पर १० दिनों तक मानव-तन गले हुए तांबे एवं रजत के मिश्रित रंग के समान रहता है। २. कलुषावस्था-अगले १० दिनों में वह कृष्ण वर्ण का हो जाता है।' ३. स्थिरावस्था-अगले १० दिनों में वह यथावत् स्थिर रहता है। बुब्बुदभूत-दूसरे महीने में मानव-तन की स्थिति एक बबूले के समान हो जाती है ।११ घनभूत-तीसरे मास में वह बबला कुछ कड़ा हो जाता है। मांसपेशीभूत-चौथे मास में उसमें मांसपेशियों का बनना प्रारम्भ हो जाता है। ७. पुलकभूत-पाँचवें मास में उक्त मांस-पेशियों में पांच पुलक अर्थात् ५ अंकुर फूट जाते हैं, जिनमें से नीचे के दो अंकुरों से दो पैर और ऊपर के ३ अंकुर में से बीच के अ'कुर से मस्तक तथा दोनों बाजुओं में से दो हाथों के अंकुर फूटते हैं।"छठवें मास में हाथों-पैरों एवं मस्तक की रचना एवं वृद्धि होने लगती है। १. इस प्रकरण के.लिए देखिए गाथा संख्या ३६०,७०२,७२९-३०,१०२७-३५, १४६६. २. दे० गाथा १०३५. ३. दे० गाथा १०४२. ४. दे० गाथा ४६५. ५. ६० गाथा १८१६. ६-७. दे० गाथा १०१६. ८-१०. दे० गाथा १००७. ११. दे० गाथा १००८. १२-१५. दे० गाथा १००६. आचार्यरल श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रम्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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