Book Title: Mularadhna Aetihasik Sanskrutik evam Sahityik Mulyankan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 13
________________ प्रतीत होता है कि शिवार्यकाल तक अशोक की वे परम्पराएं किन्हीं विशेष राजनैतिक कारणों से स्थिर नहीं रह पाई थीं और उनमें रूक्षता एवं कठोरता पुनः आ गई थी। इसका अनुमान मूलाराधना में प्राप्त उक्त विषयक सन्दर्भों से लगाया जा सकता है । दण्डों के कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं : दण्डन' - राजा द्वारा धनापहार ( Attachment of Property ) २. मुण्डन - सामान्य अपराध पर शिरोमुण्डन । ३. ताड़न' - घूंसा, लाठी, बेंत अथवा चाबुक से पिटवाना । ४. बन्धन बेड़ी, साँकल, चर्मबन्ध अथवा डोरी से हाथ-पैर अथवा कमर बंधवाकर कारागार में डलवा देना । ५. छेकछेद ओष्ठछेद नकछेद एवं मस्तकछेद कराना । ६. भेदन कांटों की चौकी पर लिटा देना । ७. भंजन - - ११ १५ ८. अपकर्षण' - आँखों एवं जीभ अथवा दोनों को खिंचवा लेना । ६. भोज्य पदार्थ - मूलाराधना में विविध भोज्य पदार्थों के नामोल्लेख भी मिलते हैं। उनका वर्गीकरण, खाद्य, स्वाय एवं अवलेह्य रूप तीन प्रकार से किया गया है । ऐसे पदार्थों में अनाज से निर्मित सामग्रियों में पुआ, भात, दाल एवं घी, दही, तेल, गुड़, मक्खन, नमक, मधु एवं पत्रशाक प्रमुख हैं ।" दन्तभंजन, हाथी के पैरों के नीचे कंपा देना। मारण' - गड्ढे में फेंककर ऊपर से मिट्टी भरवा देना, गला बाँधकर वृक्षशाखा पर लटकवा देना, अग्नि, विष, सर्प, क्रूर प्राणी आदि के माध्यम से अपराधी के प्राण ले लेना । पकाए हुए भोजनों के पारस्परिक सम्मिश्रण से उनके जो सांकेतिक नाम प्रचलित थे, वे इस प्रकार हैं १. संसृष्टा एवं कुल्माष (कुलस्म) आदि से मिश्रित भोजन । २. फलिह १२. -थाली के बीच में भात रखकर उसे चारों ओर से पत्ते के शाक से घेर देना । - ३. परिख थाली के मध्य में मात आदि भोज्यान्न रखकर उसके चारों ओर पक्वान्न रख देना । ४. पुष्पोपहित - व्यञ्जनों के बीचोंबीच पुष्पों की आकृति के समान भोज्यान्न की रचना कर देना । ५. गोवहिद " - जिसमें मोंठ आदि धान्य का मिश्रण न हो, किन्तु जिसमें भाजी, चटनी वगैरा पदार्थ मिला दिए गए हों । ६. लेवड" - हाथ में चिपकने वाला अन्न । ७. अलेवड" हाथ में नहीं चिपकने वाला अन्न । - ८. पान " - सिक्थसहित अथवा सिक्थरहित भोजन । ९. मृतपूरक" आटे की बनाई हुई पूरी। पानक- प्रकार – भोज्य पदार्थों के अतिरिक्त पेय पदार्थों की चर्चा मूलाराधना में पृथक् रूप से की गई है। उन्हें छह प्रकार का बताया गया है Jain Education International - १-२ दे० गाथा १५६२. ३. दे० गाथा १५६३-६४. ४६. दे० गाथा १५१५-६६ - १. सत्य उष्ण जल २. बहल - कांजी, द्राक्षा, तितणीफल ( इमली ) का रस आदि । ३. लेवड - दधि आदि । ४. अलेवड मौड आदि । - १०. दे० गाथा २१३-२१५ दे० गाया २२० १९. दे० गाया १००६ २०. दे० गाथा ७०० जैन इतिहास, कला और संस्कृति For Private & Personal Use Only ६६ www.jainelibrary.org

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