Book Title: Mul Bhasha Me Ghus Pet
Author(s): K R Chandra
Publisher: K R Chandra

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Page 4
________________ पाटों को खोज निकालना होगा। यह कार्य किसी एक व्यक्ति का नहीं है परंतु किसी एक संस्था को यह कार्य उठा लेना चाहिए। नीचे एक ही पाट के उत्तरवर्ती और प्राचीन प्रयोगों के कुछ उदाहरणों के साथ यह लेख समाप्त किया जाता है। नीचे नं. 1 में मजैवि का पाठ है और नं. 2 में विविध हस्तप्रतों में मिलने वाले बम्बई प्राचीन पाट दिये गये हैं। (7) 1. सुयं मे आउसं? तेणं भगवया एवं अक्वायं 2. सुतं मे आउसंते? गं भगवता एवं अक्वातं 1. अत्यि मे आया उववाइए 2. अत्थि मे आता ओबवादिए 1. तत्य खलु भगवया परिण्णा पवेड्या 2. तत्य खलु भगवता परिन्ना पवेदिता (4) 1. तं से अहियाग, तं मे अबोहीए 2. तं मे हिताए, तं से अबोधीए इसमें स्पष्ट है कि यदि भाषा की घुस-पैठ को निष्कासित करके प्राचीनता को स्थापित करना है तो भाषिक दृष्टि से अर्धमागधी के आगम ग्रंथों को पुनः सम्पादित किया जाना चाहिए और निश्चिन्त होकर यह भी समझ लेना चाहिए कि इस प्रकार के सम्पादन से मूत अर्थ में कहीं पर भी अल्पांश में भी कोई अन्तर मला नहीं आएगा परंतु इससे तो हम उलटे अपने गणधरों की भाषा के निकट ही पहुंचेंगे। श्री महावीर जैन विद्यालय के संस्करण के साथ अन्य संस्करणों की तुलना करने पर उसमें इसी प्रकार की अंशतः भाषिक प्रगति सिद्ध होती है और अब इससे भी आगे बढ़ने की आवश्यकता है जो सर्वथा हस्तप्रतों के और आगमों के प्राचीन पाटों के आधार पर ही एक नवीन संस्करण तैयार होगा। शुभकामनायें : मै० वर्द्धमान डाईकास्टिंग इन्डस्ट्रीज 10, बैंक कॉलोनी, मैरिस रोड, अलीगढ़ (उ० प्र०)-202001

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