Book Title: Moksha dharm aur Vyavastha Dharm
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 3
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ 388 5888888888888888888888888888888883 200-2000-220888 भूखे को रोटी खिलाना भी धर्म बन जाता है, प्यासे को पानी पिलाना भी धर्म बन सकता है। इसीलिए अधिकांश लोग मन्दिर-मस्जिदों में अपनी-अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए चक्कर लगाते हैं। जब तक पदार्थ सुख ही केन्द्र में रहेगा तब तक मोक्ष का आनन्द अनुभव नहीं किया जा सकता। समुदाय के झगड़े खड़े हुए बिना नहीं रह सकते। आज जगह-जगह धर्मान्तरण की जो घटनाएं हो रही है, उनकी प्रेरणा मोक्ष धर्म नहीं है। यह सारा सम्प्रदायों की संख्या बढ़ाने का अहंकार है। धर्म तो है अहंकार का त्याग और सम्प्रदाय है त्याग का अहंकार। आदमी को जिस व्यवस्था से अपना पेट भरता दिखाई देता है वह उसी सम्प्रदाय के पीछे खड़ा हो जाता है। कुछ लोग पैसे के पीछे नहीं होते तो वे रूढ़ परम्परा के पीछे हो जाते है। इसीलिए धर्म के नाम पर वोट मांगे जाते हैं। राजनीति व्यवस्था का धर्म हो सकती है, पर उसे मोक्ष धर्म से बचाया जाना चाहिए व सम्प्रदायों से भी बचाया जाना चाहिए। धर्म और संप्रदाय के भेद को समझना जरूरी है। राजनीति धर्महीन नहीं चाहिए। पर धर्म में राजनीति नहीं आनी चाहिए। यह तभी संभव है जब हम मोक्ष धर्म की पुरूषार्थ चतुष्टय धर्म की अवधारणा को ठीक से समझें। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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