Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज जैन संस्कृति और साहित्य के दिग्गज रक्षक तथा कला क्षेत्र एवं अन्य विधाओं के मर्मज्ञ होने के उपरांत उन्होंने भारत की एकता, साम्प्रदायिक सामंजस्य और विविध धर्मो कि समन्वय को अपना कर मानव मात्र के कल्याण को जीवन संदेश बना कर वह सदैव प्रयत्नशील है। उन्होंने कार्य-कलाप, व्याख्यान और गतिविधियों के माध्यम से सदा-सर्वदा राष्ट्रहित, विकास और नैतिकतामय सुसंस्कृत धार्मिक संस्कारों का प्रचार और प्रसार किया है। आचार्य श्री धर्म के संदर्भ में भले ही जैन-धर्म से जुड़े हों। किंतु विचार, वाणी, कर्म और कार्य से भारतीय संस्कृति के ज्योतिर्मय नक्षत्र मंडल से सर्वत्र देदीप्यमान हैं। वास्तव में वह एक क्रांतिदर्शी मनीषी हैं, जिनमें संन्यासी वृत्ति, त्याग-तपस्विता के साथ-साथ एक अपूर्व तेजस्विता एवं दूरदर्शी दृष्टिकोण है। उनकी सूर्य की तरह प्रखर ज्ञान की उष्मा, प्राचीन ऋषिमुनियों की सात्विकता, कबीर की स्पष्टवादिता और विवेकानंद सी ओजस्वी शैली ने असंख्य जन-हृदयों की श्रद्धा का भाजन बना दिया है। प्रायःवह अपने प्रवचनों में कहते हैं “मैं सभी का हूँ, सभी मेरे हैं। प्राणी-मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना हैं । मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सब के लिए हूँ। मैं इसाइयों का पादरी, मुस्लिमों का फकीर, हिंदुओं का संन्यासी और जैनियों का आचार्य For Private And Personal Use Only

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