Book Title: Mithyatvadi ka Pratikraman Katipay Prerak Prasang Author(s): Hukamkunvar Karnavat Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 2
________________ 246 जिनवाणी 15, 17 नवम्बर 2006 राजा की जो राज्यादि की झूठी मान्यता थी, वह दूर हो गई। राजा ने सही समझ प्राप्त कर मिथ्यात्व या झूठी मान्यता का प्रतिक्रमण किया। अव्रत का प्रतिक्रमण परदेशी राजा ने अव्रत का प्रतिक्रमण किया था। राजा परदेशी शरीर और आत्मा को अलग-अलग नहीं मानता था । उसने अनेक जीवों को कोठी में बंद करके रखा था। वे प्राणरहित बन गए। वह नहीं जान सका कि उनकी आत्मा कहाँ से निकली और कैसे? एक दिन परदेसी राजा के नगरवासी चित्त सारथी ने सोचा कि राजा को प्रतिबोध दिलाना जरूरी है। राजा इतना पाप कर रहा है, यह तभी बंद होगा। सारथी चित्त ने केशी मुनि से निवेदन किया। मुनि ने राजा को सेवा में लाने की बात कही। साथी राजा को घोड़ों की परीक्षा के बहाने बगीचे में ले आया। मुनि पहले से ही पधारे हुए थे। राजा की नजर मुनि पर पड़ी- पूछा यह कौन ? सारथी ये शरीर और आत्मा को अलग-अलग मानते हैं। राजा तुरन्त उनकी सेवा में पहुँचा । राजा क्या आप जीव और शरीर को अलग-अलग मानते हैं ? मुनि हाँ, मृत्यु के बाद जीव दूसरी गति में जाकर पुण्य पाप का फल भोगता है। राजा मेरे दादा बहुत पापी थे। आपके कथनानुसार वे नरक में गए होंगे। वे यहाँ आकर मुझसे कहते -- बेटा, पाप मत कर नहीं तो मेरी तरह नरक के दुःख भोगेगा। तो मैं शरीर और जीव को अलग मान लेता । #4 wall मुनि तुम अपनी सूर्यकान्ता रानी के साथ किसी पापी को व्यभिचार करते देखो तो क्या करोगे? राजा - मैं उसकी जान ले लूंगा। मुनि - यदि वह थोड़ी देर के लिए घरवालों को कहने हेतु जाना चाहे तो ? राजा - ऐसा कौन मूर्ख होगा ? - मुनि- इसी प्रकार अनेक पाप करते-करते तुम्हारे दादा को नरक से छुट्टी कैसे मिलेगी ? राजा- मैंने एक अपराधी को कोटी में बंद किया । कोठी पूरी बन्द थी। थोड़ी देर बाद कोठी में देखा । वह मर चुका था । किन्तु मैंने जीव को निकलते नहीं देखा। मुनि - राजन् ! गुफा का द्वार बन्द कर कोई अन्दर ढोल बजावे तो आवाज बाहर आयेगी । राजा - आयेगी। इसी प्रकार आत्मा शरीर से निकल जाता है, परन्तु दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार लोहे के गोले में आग प्रवेश कर जाती है, परन्तु पता नहीं चलता । श्रावस्ती का राजा परदेसी समझ गया । वह जैन धर्म का अनुयायी बन गया । बेले बेले तप करते हुए धर्मसाधना करने लगा। दानशाला खोल दी। रानी सूर्यकान्ता ने उसे भोजन में विष दे दिया। राजा ने समता रखी, मृत्यु पाकर देव बना और महाविदेह में जन्म लेकर वह मोक्ष जायेगा। इस प्रकार राजा परदेसी ने अबत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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