Book Title: Mevad me Virval Pravrutti Author(s): Nathulal Chandaliya Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 3
________________ - मदनलाल पीतल्या, गंगापुर M-0-0-0--0-0--0--0-0--0--0--0--0-0--0--0--0-0-0--2 मेवाड़ के प्रसुप्त धार्मिक तेज को पुनः प्रदीप्त 1 1 कर उसमें नव चेतना फूंकने का कार्य एक ऐतिहासिक कार्य है। बिखरी हुई युवा शक्ति एवं सामाजिक चेतना को संगठित एवं कार्यशील करने वाली एक 1 जीवंत सँस्था का परिचय यहाँ दिया गया है। मेवाड़ का कल्पवृक्ष धर्मज्योति परिषद 000000000000 000000000000 ET PMING सामाजिक संरचना मानवीय सभ्यता की सबसे बड़ी उपलब्धि है। व्यक्ति समस्याओं से ग्रस्त है और जब अनेकों व्यक्ति ही समाज के अंगभूत होते हैं तो समस्याएँ सामाजिक रूप धारण कर लेती हैं। सामाजिक समस्याओं का निराकरण सामाजिक स्तर पर करना होता है। समय पर सामाजिक समस्याओं का समाधान नहीं होता है तो पीड़ाएँ घनीभूत हो जाया करती हैं। कुछ बिरल विभूतियां उन घनीभूत पीड़ाओं को समझ पाते हैं। उद्गम और विकास जब पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज साहब का भूपालगंज (भीलवाड़ा) में चातुर्मास था उस अवसर पर क्रान्तदृष्टा प्रवर्तक श्री के शिष्यरत्न मुनि श्री कुमुदजी ने समाज के कतिपय प्रगतिशील विचारकों के समक्ष समाज की अन्तीड़ा की ओर कान्तिकारी संकेत दिया / बस धर्मज्योति परिषद् के उद्गम का यही मूल था। एक छोटा-सा संविधान बना, एक रूपरेखा खड़ी हुई और एक संस्था का बीज वपन हो गया। आर्थिक पृष्ठ भूमिका का जहाँ तक प्रश्न है वह बिलकुल नहीं थी, जो उग भी नहीं गई, ऐसी संस्था में कोई पैसा लगाना नहीं चाहता था। प्रारम्भिक सद्योग के रुप में श्री मूलचन्द जी कोठारी रायपुर वाले का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने संस्था को पांच सौ रुपया प्रारम्भ में कर्ज स्वरूप निःशुल्क दिया जो दो-तीन वर्षों बाद मेंट ही नहीं कर दिये अपितु पाँच सौ रुपये और मिलाकर एक हजार के दान की घोषणा कर दी। कार्य प्रारम्भ होते ही चारों तरफ से आर्थिक एवं भावात्मक सहयोग की बहार आ गई। प्रवृत्तियाँ-संस्था की मौलिक प्रवृत्तियाँ चार हैं। (1) जैन शालाओं का संचालन (3) अभाव-प्रस्तों को सहयोग (2) पत्रिका का प्रकाशन (4) सत्साहित्य का प्रकाशन / पहुंना, हमीरगढ़ और उसके आगे बहने वाली विशाल बनास नदी को देखकर कुंभलगढ़ के पहाड़ों में बनास के उद्गम को कोई देखे तो उसे विश्वास नहीं हो सकता कि यह छोटा-सा स्रोत इतना विशाल रूप भी धारण कर सकता है। यही बात धर्म ज्योति परिषद के लिये है। आज जो धर्म ज्योति परिषद का रूप है। इसके उद्गम के समय इसका कोई अनुमान नहीं कर सकता था। अधिकतर तो ऐसी आशंकाएँ ही व्यक्त किये करते कि ऐसी संस्थाएँ क्या टिकेंगी? विपरीत दिशाओं से आने वाली ऐसी ध्वनि के विरुद्ध कार्यकर्ताओं ने भी सुदृढ़ निश्चय कर रक्खा था कि प्रेरणा महासती श्री प्रेमवती जी का उपदेशात्मक योगदान, साथियों और कार्यकर्ताओं की लगन मेवाड़ के धर्मप्रेमी सज्जनों का सहयोग सभी ने मिलकर संस्था को स्थिर भी नहीं अपितु उसे विस्तृत भी कर दिया। 'धर्म ज्योति परिषद' आज बीस से अधिक जनशालाओं का संचालन कर रही है। कई अभावग्रस्त भाईबहनों को मासिक सहयोग कर रही है। संस्थाने अपने लक्ष्य के अनुरूप कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं। इस दिशा में अभी निकट भविष्य में बहुत अच्छा साहित्य प्रकाशित करने की योजना है। धर्म ज्योति मासिक पत्रिका जो प्रारम्भ में केवल 70 व्यक्तियों को मिल पाती आज एक हजार से अधिक निकलती है। निष्पक्ष शुद्ध सात्विक धार्मिक विचार देना पत्रिका का ध्येय है, जिसमें यह नितान्त सफल रही है / समय-समय पर इसके विशेषांक भी प्रकट होते रहे हैं। मेवाड़ में जो भी सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं उनके मूल में पत्रिका का शानदार योगदान है। धर्म ज्योति परिषद मेवाड़ में एक कल्पतरू के रूप में विकसित होने वाली संस्था है / मेवाड़ के जन जन का प्यार इसे उपलब्ध है, आशा है कुछ ही वर्षों में यह संस्था और अधिक विराट विस्तार के आयाम स्थापित करेगी। .... ... JainedumaticPage Navigation
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