Book Title: Mevad me Virval Pravrutti
Author(s): Nathulal Chandaliya
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 2
________________ अहसक समाज रचना का एक प्रयोग : मेवाड़ में वीरवाल प्रवृत्ति | २२१ पर सैंतीस बीघा भूमि पर अहिंसा नगर बनाया गया। भवन निर्माण पर दो लाख रुपये खर्च किये गये । छात्रावास वहीं प्रवृत्तमान है। 'अहिंसा नगर' जैन समाज और वीरवाल समाज की एक विलक्षण उपलब्धि है इसे मूर्त रूप देने में जिन सहयोगियों का मुख्य हाथ रहा उनमें कुशालपुरा के सेठ हेमराजजी सिंघवी प्रमुख हैं। श्री हेमराजजी ने एक लाख की राशि संघ को देने दिलाने का वचन दिया । तैतीस हजार मद्रास से दिलाये, शेष रुपया अपनी तरफ से मिला कर एक लाख पूरा कर दिया । अहिंसा नगर का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्रीयुत मोहनलाल जी सुखाड़िया द्वारा हुआ। यह घटना ३ अप्रेल, सन् १९६६ की है । वीरवाल जाति अपने नाम के अनुरूप ही बहादुर है । इसने खटीकों के साथ अपने सारे सम्बन्ध तोड़ दिये । पाठक सोचें कि यह कार्यं कितना दुष्कर है । कहीं-कहीं तो पिता पुत्र से अलग है, पुत्र वीरवाल और पिता खटीक है तो दोनों का कोई सम्बन्ध नहीं, अहिंसा के लिए इतना बड़ा कदम उठाने वाले वीर नहीं तो और क्या है । वीरवाल अपने स्वीकृत सिद्धान्तों के प्रति सच्चे और अडिग हैं । १ मई, सन् १९५८ का वह स्वर्ण दिन वीरवालों के लिए ऐतिहासिक दिन है क्योंकि उस दिन इस जाति की स्थापना हुई है । विश्व में मई दिवस मजदूरों की मुक्ति के रूप में मनाया जाता है तो वीरवालों के लिए १ मई अपने नवजागरण का सन्देश लेकर आता है । वीरवाल समाज को संगठित और सुशिक्षित करने हेतु प्रायः पर्यूषण में आठ दिनों का शिक्षण शिविर आयोजित किया जाता है जिसमें प्रायः अधिक से अधिक वीरवाल भाग लेते हैं और त्याग, तप, व्रत पौषध, सामायिक प्रतिक्रमण उन्हीं का शिक्षण ग्रहण करते हैं । संस्था वीरवाल समाज के अभ्युदय के लिए छात्रवृत्ति, शिक्षण तथा व्यवसाय का भी यथा शक्ति व्यवस्था करती है। वीरवाल समाज के क्षेत्र में आज कई कार्यकर्ता सक्रिय हैं उनमें इन्दौर वाले कमला माताजी का नाम सर्वोपरि है। श्री कमला माताजी ने अपना पूरा जीवन ही वीरवाल सेवा में अर्पित कर रक्खा है । पूरे समाज में माताजी के नाम से प्रख्यात माताजी बड़ी विदुषी और कर्मठ कार्य कर्त्री है । आज उन्हीं से दिशा निर्देशन प्राप्त हो रहा है। वीरवाल समाज एक नवांकुर है, इसे समाज के स्नेह की आवश्यकता है। संत मुनिराज तथा समाज के धनी एवं कार्यकर्ताओं का समुचित सहयोग मिले तो यह समाज भारत में अहिंसा का निराला प्रतीक बन सकता है । Besan has अगर कभी मूर्ख का संग हो जाये तो पहली बात उसके साथ बातचीत मत करो! बातचीत करनी पड़े तो उसकी बात का उत्तरमात्र दो, बहसबाजी या खण्डन मण्डन मत करो। क्योंकि मूर्ख की बात का समर्थन किया नहीं जा सकता और विरोध करने से वे रूठ जायेंगे, संभवतः विरोधी व शत्रु भी बन जाये । इसलिये नीतिकारों ने कहा है- मूर्ख के साथ 'मौन' ही सर्वोत्तम व्यवहार है । 'अम्बागुरु-सुवचन 000000000000 * ooooooooo000 4000DDDDDD Bhi/

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