Book Title: Mevad ki Lok Sanskruti me Dharmikta ke Swar
Author(s): Mahendra Bhanavat
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 6
________________ मेवाड़ की लोकसंस्कृति में धार्मिकता के स्वर | ९७ ०००००००००००० ०००००००००००० LARIAL का स्व WALA TAIL SO.. ....... 2 AUTHTTAILS MALTIME कोई साधन नहीं होते हैं तो समस्त जनता सामुहिक बैठक के रूप में नाना कथा-गाथाओं द्वारा आनन्द-रस प्राप्त करती है। इनमें लोक देवताओं तथा भक्तों सम्बन्धी कथाओं के वाचन कराये जाते हैं । भजनियों की संगत में रात-रात भर भजनों के दौर चलते रहते हैं । इन भजनों में मीरा, चन्द्रसखी, हरजी, कबीर, तोलादें आदि के भजन आध्यात्मिक भावनाओं की दृढ़भित्ति लिए होते हैं । लोक देवता तेजाजी की कथाओं को रात भर जनता बड़ी भक्तिनिष्ठा से सुनती है तेजाजी के अलावा रामदेवी जी, हरिश्चन्द्र रामलीला, कृष्णलीला, सत्यनारायण की कथा गाथाओं में जनता का सहज उमड़ता भक्तिभाव, कई अभावों, दुःखदर्दो को हल्का कर सुख और शांति की श्वांस लेता है इसी प्रकार पाबूजी के पवाड़े, रामदेवजी के ब्यावले तथा जागरण के गीतों में इन चमत्कारी पुरुषों के शौर्य-चरित तथा परमार्थ कार्यों से अपने क्षुद्र स्वार्थों को त्यागकर परमार्थ हित कल्याण के सबक सुनने को मिलते हैं । गाने सुनने वालों पर इनका बड़ा असर होता है जो जिन्दगी भर आदर्श बनकर नेक इन्सान की असलीयत को बनाये रखते हैं। लोकदेवी देवताओं से सम्बन्धित गीत गाथाओं का तो कहना ही क्या जीवन के प्रत्येक संस्कार, वार-त्यौहार उत्सव, रोग, अनिष्ट की आशंका, भावी जीवन की खुशहाली, रक्षा-सुरक्षा, नौकरी, चाकरी, वाणिज्य-व्यापार, फसल आदि सैकड़ों प्रसंग हैं जिनमें पहले बाद में इन देवी-देवताओं की शरण लेनी पड़ती है। इन्हें रिझाने के लिए नाना प्रकार के गीत गाये जाते हैं । सर्प कटों को जब तेजाजी गोगाजी की बाँबी पर ले जाते हैं तो इन देवताओं के गाथा-भारत उच्चरित किये जाते हैं फलतः भोपे के शरीर में इनका आगमन होता है और जहर चूसकर उस व्यक्ति को चंगा कर दिया जाता है । लोक जीवन में इनके प्रति इतनी गूढ़ श्रद्धा-आस्था भक्ति रही है कि उनके लिए अन्य सारे साधन उपयोग निरर्थक से हैं । नव रात्रा में इन देवताओं की पूरे नौ ही दिन चौकियां लगती हैं । अंखड दीप-धूप रहती है, भजनभाव भक्तिमय सारा वातावरण रहता है। इनकी पूजा-प्रतिष्ठा में सारा गाँव उमड़-पड़ता है। डेरू-ढाक-थाली के सहारे इनके यशभारत रात-रात भर गाये जाते हैं, इन दिनों कोई गांव ऐसा नहीं मिलेगा जहाँ इनका देवरा न गाजबाज उठता हो, रेबारी, राडारूपण, माताजी, चावंडा, लालांफूलां, भेरू, कालका, रामदेव, नारसिंघी, मासीमां, वासक, पूरवज, देव नारायण ताखा, भूणामेंदू, आमज, हठिया, रतना, नाथू, रांगड्या, केशरिया जी, कौरव, पांडव, मामादेव आदि कितने ही देव-देवियाँ हैं जो सम्पूर्ण लोक की रक्षा करते हैं, धर्मभावना, जगाते हैं और खुशहाली बाँटते हैं । इन सबके भारत, विधि विधान, मोपे और देवरे हैं अलग-अलग रूपों में इनकी पूजा के विधान हैं । गाँव का हर जन-मन इनका जाना-पहचाना होता है। बिना प्रगटाये, प्रत्यक्ष हए, ये देव अपराधियों को सजा देते हैं, चोरियों का पता लगाते हैं। वैद्य-हकीम बन हर प्रकार की मनुष्य-जानवरों की बीमारियाँ दूर करते हैं, आगे आने वाले समय का अता-पता देते हैं, प्राकृतिक प्रकोपों से जन-धन की रक्षा करते हैं। ये ही गांव के संतरी, पुलिस, डाक्टर, अध्यापक, धर्मगुरु, ईश्वर तथा सद्गति देने वाले होते है। (च) धर्मस्थानों के लोक-साहित्य में धार्मिकता के स्वर धर्मस्थानों का लोकसाहित्य अपने आप में बड़ा विविध, विपुल तथा व्यापक है । विविध सपनें, चौवीसियाँ, पखी गीत, साधु-साध्वी सम्बन्धी गीत-बधावे, विविध थोकड़े, गरभचिंतारणियाँ, मृत्युपूर्व सुनाये जाने वाले गीत, तपस्या गीत, विविध चौक, ढालें, तवन, भजन, कथाएँ, कहानियाँ, व्यावले, बरात, सरवण तीथंकरों, गणधरों तथा सतियों सम्बन्धी गीत धार्मिक संस्कृति के कई रूप उद्घाटित करते हैं । साधु साध्वियों का किसी गाँव में पदार्पण हर सबके लिए बड़ा आल्हादकारी होता है, इस उल्लास में जो गीत फूट पड़ते है उनसे लगता है कि जैसे सारे गाँव का ही भाग्योदय हुआ है, सोना रत्नों का सूर्य उदित हो आया है। साधुजी महाराज दीपित हुये से लग रहे हैं । साक्षात् में जैसे जिनवाणी सूर्य ही प्रगट हो आया है। यह सच भी है, साधु महाराज ही तो जैनियों के सर्वस्व हैं । इनका पधारना जैसे कुकुम् केसर के पगल्यों का पदार्पण है । SUDHINIUDA

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