Book Title: Mevad ki Lok Sanskruti me Dharmikta ke Swar Author(s): Mahendra Bhanavat Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 5
________________ १६ पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 ०००००००००००० YMAIL मूर्ति के पीछे लगाई जाती हैं, इनमें कृष्ण जीवन की अनेक घटनाएँ चित्रित की हुई मिलती हैं। नाथद्वारा की पिछवाइयाँ विदेशों में बड़े शौक से खरीदी जाती हैं । पड़ों में पाबूजी, रामदला, कृष्णदला, देवनारायण, रामदेव तथा माताजी की पड़े बड़ी प्रख्यात हैं, इन पड़ों में चित्रित लोक देवता विषयक उदात्त चरित्रों की महिमा लोकजीवन की आदर्श थाती है। ये पड़ें चूंकि लोकजीवन में प्रतिष्ठित-पूजित देवताओं की जीवन-चित्रावलियां होती हैं इसलिए इनकी महत्ता साक्षात् देवतुल्य स्वीकारी हुई हैं, इसलिए किसी भी प्रकार का संकट आने पर लोग पड़ बंचवाने की बोलमा बोलते हैं और जब रोगसंकट से मुक्त हो जाते हैं तो बड़ी श्रद्धाभावना से इन पड़ों के ओपों को अपने गृह-आंगन में आमंत्रित कर रात-रात भर पड़ वाचन करवाते हैं । विविध त्यौहारों तथा शुभ अवसरों पर गृह-आँगन के मांडनों में धार्मिक अभिव्यक्ति के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। गणगौर पर गोर का बेसण, दीवाली पर सोलह दीपक, होड़ सातिया, गाय के खुर, कलकल पूजन पर कलकल और पुष्कर की पेड़ी, ल्होड़ी दीवाली पर लक्ष्मी जी के पगल्ये, होली पर कलश कूडे जैसे मांडनें और नवरात्रा पर पथवारी और माता शीतला सातमा पर माता शीतला एवं बालजन्म पर छठी के मांडने हमारे सम्पूर्ण धर्मजीवी आचरणों की मांगलिक खुशहाली और अभिवृद्धि के पूरक रहे हैं । इनसे हमारा जीवन शुद्ध और आँगन पवित्र होता है ऐसे ही जीवन आँगन में देवताओं का प्रवेश माना गया है, इसलिए देव निमन्त्रण के ये मांडनें विशेष रूपक हैं। रात्रि में इनके जगमगाहट और भीनी सुगन्धी से देवदेवियों का पदार्पण होता है। मेंहदी के मांडनें भी इसी तथ्य के द्योतक हैं, जवारा, मोरकलश, सुपारी, घेवर, बाजोट, तारापतासा, चाँदतारा, चूंदड़ी आदि मांगलिक भावनाओं के प्रतीक हैं, जवारा खुशहाली के प्रतीक, सुपारी गणेश की प्रतीक, घेवर भोग के प्रतीक, बाजोट थाल रखने का प्रतीक, चाँदतारा, चूंदड़ी सुखी-सुहागी जीवन के प्रतीक हैं । गोदने भी सुहाग चिन्हों में से एक हैं । मरने पर शरीर के साथ कुछ नहीं जाता, विश्वास है कि गोदनें ही जाते हैं। इन गोदनों से अगला जन्म पवित्र बनता हैं इसलिए औरतें अपने हाथों, पाँवों, वक्षस्थल, पीडलियों, गाल, ललाट तथा समग्र शरीर पर तरह-तरह के गोदने गूदवाती हैं, इन गोदनों में विविध देवी-देवता, पक्षी, बेल-बूंटे, सातिया, बिंदी तथा आभूषण मुख्य हैं। जैनचित्रों में धार्मिक शिक्षणपरक कई दृष्टान्त चित्रों की स्वस्थ परम्परा रही है, इनमें नारकीय जीवन की यातना परक चित्रों की बहुलता मिलती है ताकि उनको देखकर प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को अच्छा बनाने का प्रयत्न करे और अच्छा फल और अच्छी गति प्राप्त करे । नरक जीवन के चित्रों में मुख्यतया पाप, अन्याय, अत्याचार, छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेष, चोरी, कलह तथा अनैतिक कार्यों के फलस्वरूप भुगते जाने वाले कष्टों के चित्र कोरे हुए मिलते हैं। मनोरंजन के माध्यम से भी धार्मिक शिक्षण के बोध कराने के कई तरीके हमारे यहाँ प्रचलित रहे हैं, उनमें सांप-सीढ़ी का खेल लिया जा सकता है। इस खेल-चित्र में सांप-सीढ़ी के साथ-साथ विविध खानों के अलग-अलग नाम दिये मिलते हैं जो सुकर्म और कुकर्म के प्रतीक हैं, इनमें तपस्या, दयाभाव, परमार्थ, धर्म, उदारता, गंगास्नान, देवपूजा, शिव एवं मातापिता भक्ति, ध्यान समाधि, गोदान तथा हरिभक्ति से चन्द्रलोक, सूर्यलोक, अमरापुर, तप, धर्म, ब्रह्म, शिव, गौ, इन्द्र, स्वर्ग धर्मलोक के साथ-साथ सीढ़ियों के माध्यम से बैकुण्ठ की प्राप्ति बताई गई है। दूसरी ओर झूठ, चोरी, बालहत्या-परनारीगमन, विश्वासघात, मिथ्यावचन, गौहत्या, अधर्म आदि बुरे कर्मों के सर्प काटने से क्रोध-रौरवनरक, मोहजाल कुम्भी पाक नरक, पलीतयोनि, बालहत्या-तलातल, रसातल में पड़कर जघन्य कष्टों को सहना पड़ता है। सिढियां चढ़ना जीवन के उन्नयन और विकास का प्रतीक तथा सर्प काटने से नीचे उतरना हमारे दुदिन, दुर्गति तथा पतितावस्था का बोधक है । जैन पांडुलिपियों, ताड़पत्रों तथा मन्दिरों में दीवालों पर जो चित्र मिलते हैं उनमें नंदीश्वरद्वीप, अढाईद्वीप, लोकस्वरूप, तीर्थंकरों के जीवनाख्यान, विविध बरात, स्वप्न, उपसर्ग, समवसरण, आहार दान तथा कर्म सिद्धांत जैसे चित्र बहुलता लिए होते हैं। (घ) लोक-कथा, गाथा एवं भारत में धार्मिकता के स्वर लोक देवी देवताओं तथा धार्मिक महापुरुषों से सम्बन्धित कथा, गाथाओं, पवाड़ों, व्यावलों भजनों तथा भारतों का इस प्रदेश में बड़ा जोर रहा है। गांवों में दिनभर कार्य व्यस्त रहने के पश्चात् रात्रि को जब मनोविनोद के STAURANTALE OOOGONDO नीटPage Navigation
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