Book Title: Mevad ka Prakrit Sanskrit evam Apbhramsa Sahitya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 4
________________ 000000000000 * 000000000000 4000DCODED २०२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ हरिषेण एवं धम्मपरिक्खा हरिषेण ने अपनी धम्मपरिक्खा वि० सं० १०४४ में लिखी थी । इस ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि मेवाड़ देश में विविध कलाओं में पारंगत एक हरि नाम के व्यक्ति थे । ये श्री ओजपुर के धक्कड़ कुल के वंशज थे । इनके एक गोबर्द्धन नाम का धर्मात्मा पुत्र था । उनकी पत्नी का नाम गुणवती था, जो जैन धर्म में प्रगाढ़ श्रद्धा रखने वाली थी । उनके हरिषेण नाम का एक पुत्र हुआ, जो विद्वान् कवि के रूप में प्रसिद्ध हुआ । उसने किसी कारणवश चित्तौड़ को छोड़कर अचलपुर में निवास किया । वहाँ उसने छन्द - अलंकार का अध्ययन कर 'धर्मपरीक्षा' नामक ग्रन्थ लिखा । 1 हरिषेण ने धर्म परीक्षा की रचना प्राकृत की जयराम कृत धम्मपरिक्खा के आधार पर की थी । इन्होंने जिस प्रकार से पूर्व कवियों का स्मरण किया है, उससे हरिषेण की विनम्रता एवं विभिन्न शास्त्रों में निपुणता प्रगट होती है । धर्म परीक्षा ग्रन्थ भारतीय धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इसमें वैदिक धर्म के परिप्रेक्ष्य में जैन-धर्म की श्र ेष्ठता प्रतिपादित की गयी है। दो समानान्तर धर्मों को सामने रखकर उनके गुण-दोषों का विवेचन प्रस्तुत करना एक प्राचीन मिथक है, जो इन धर्म परीक्षा जैसे ग्रन्थों के रूप में विकसित हुआ है । हरिषेण ने इस ग्रन्थ में अवतारवाद, पौराणिक कथानक तथा वैदिक क्रियाकाण्डों का तर्कसंगत खण्डन किया है, साथ ही अनेक काव्यात्मक वर्णन भी प्रस्तुत किये हैं । ११वीं सन्धि के प्रथम कडवक में मेवाड़ देश का रमणीय चित्रण किया गया है । कहा गया है कि इस देश के उद्यान, सरोवर, भवन आदि सभी दृष्टियों से सुन्दर व मनोहर हैं। यथा जो उज्जाणहिं सोहइ खेयर मणि-कंचण-कम पुण्णहि वण्ण मोहइ वल्ली हरिहि विसालहि । खण्णहि पुरिहिं स गोउर सालहि ।। धनपाल एवं भविसयत्तकहा धनपाल अपभ्रंश के सशक्त लेखकों में से हैं । इन्होंने यद्यपि अपने ग्रन्थ 'भविसयत्तकहा' में उसके रचना स्थल का निर्देश नहीं किया है, किन्तु अपने कुल धक्कड़ वंश का उल्लेख किया है। इनके पिता का नाम मायेश्वर और माता का नाम धनश्री था । यह धक्कड़ वंश मेवाड़ की प्रसिद्ध जाति है । देलवाड़ा में तेजपाल के वि. सं. १२८७ के अभिलेख मेवाड़ का अपभ्रंश में घरकट ( धक्कड़) जाति का उल्लेख है । अतः धक्कड़ वंश में उत्पन्न होने के कारण धनपाल को कवि स्वीकार किया जा सकता है । 'भविसयत्तकहा' अपभ्रंश का महत्त्वपूर्ण कथाकाव्य है । कवि ने इसमें लौकिक नायक के चरित्र का उत्कर्ष दिखाया है। एक व्यापारी के पुत्र भविसयत्त की सम्पत्ति का वर्णन करते हुए कवि ने उसके सौतेले भाई, बन्धुदत्त के कपट का चित्रण किया है । भविसयत्त अनेक स्थानों का भ्रमण करता हुआ कुमराज और तक्षशिलाराज के युद्ध में भी सम्मिलित होता है । कथा के अन्त में भविसयत्त एवं उसके साथियों के पूर्व जन्म और भविष्य जन्म का वर्णन है । कवि ने इस ग्रन्थ में श्रुतपंचमीव्रत का माहात्म्य प्रदर्शित किया है। वस्तुतः यह कथा साधु और असाधु प्रवृत्ति वाले दो व्यक्तित्वों की १. इय मेवाड़ - देसि - जण संकुलि, सिरि उजपुर णिग्गय धक्कड़कुलि । पाव-करिंद कुम्भ-दारणहरि जाउ कलाहिं कुसलु णाहरि । तासु पुत्त पर णारिसहोयरु, गुण-गण- णिहि-कुल-गयण - दिवायरु । गोवड्ढणु णामे उप्पणउ, जो सम्मत्तरयण सपुण्णउ । तहो गोवड्ढणासु पिय गुणवइ, जो जिणवरपय णिच्चवि पणवइ । ताए जणि हरिषेणे नाम सुउ, जो संजाउ विबुह कइ - विस्सु । सिरि चित्तउडु चइवि अचलउरहो, गयउ णिय- कज्जे जिणहरप रहो । तहि छंदालंकार पसाहिय, धम्मपरिक्ख एह तें साहिय । २. घक्कड़ वणि वैसे माएसरहो समुब्भविण । घणसिरि हो वि सुवेण विरइउ सरसइ संभविण ॥ भ. क. १, ६ फक -ध० प० ११, २६

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