Book Title: Mevad aur jain Dharm
Author(s): Balwansinh Mehta
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 5
________________ 112 | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 000000000000 इतिहास के मूल्यों का सुरक्षात्मक भंडारण कर शोधाथियों के लिये वरदान स्वरूप महान कार्य किया। आपको गांधीजी ने साग्रह गुजरात विद्यापीठ का प्रथम कुलपति बनाया। आप जर्मन अकादमी के अकेले भारतीय फेलो हैं। आपकी सेवाओं के उपलक्ष्य में आपको राष्ट्रपतिजी ने पद्मश्री प्रदान कर समादृत किया। विज्ञान के क्षेत्र में श्री दौलतसिंह कोठारी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक है। आपने स्वेच्छा से भारत के शिक्षामन्त्री का पद नहीं स्वीकार किया। आप भारत की सैनिक अकादमी के प्रथम अध्यक्ष बनाये गये और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष पद से आपने अवकाश प्राप्त किया। आपको राष्ट्रपतिजी ने पद्मविभूषण प्रदान कर समाहृत किया। डा. मोहनसिंह मेहता को भी विदेशों में भारतीय प्रशासनिक सेवा व शिक्षा में सेवाओं के उपलक्ष्य में पद्विभूषण से समादृत किया गया है। श्री देवीलाल सांभर ने भारतीय लोक कलाओं के उन्नयन में महान कार्य किया है। आपने अन्तर्राष्ट्रीय कठपुतली प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर विश्व का प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया / आप भारतीय लोककला मंडल के संचालक एवं राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि मेवाड़ के इतिहास व जैन धर्म तथा मेवाड़ के जीवन क्षेत्रों व जैनियों की कृषि, वाणिज्य, वीरता व प्रशासन कुशलता की चतुर्मुखी गतिविधियों में इतना सगुम्फन है कि इन्हें हम पृथक कर ही नहीं पाते / जैनियों में मेवाड़ के धर्म, अर्थ, कर्म, ज्ञान, भक्ति, शक्ति सभी को चरम सीमा तक प्रभावित किया है और अपने अहिंसाजीवी जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में ये लोग पूर्ण पराकाष्ठा पर पहुंचे हैं। . मेवाड़ ही देश भर में एक ऐसा राज्य कहा जा सकता है जो पूर्ण अहिंसा राज्य रहा है। यहाँ के राजाओंमहाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, महाराणा जगतसिंह, महाराणा राजसिंह ने अपने शासनकाल में अहिंसा के प्रचार-प्रसार व हिंसा की रोकथाम की जैन धर्मानुकूल राजाज्ञायें प्रसारित की हैं। यही नहीं राजस्थान शासन तक ने विशिष्ट दिनों में जीव हत्या व हिंसा का निषेध तथा अहिंसा के सम्मान के राजाज्ञायें स्वराज्य के लागू होते ही सन् 1950 में ही प्रसारित की हैं। अत: हम कह सकते हैं कि मेवाड़ राज्य पूर्ण अहिंसा राज्य था। इसके मूल स्वर शौर्य को जैन धर्म ने अहिंसा की व्यावहारिक अभिव्यक्ति दी। मेवाड़ न केवल जैन धर्म के कई मतों, पंथों, मागों व गच्छों का जनक है बल्कि मेवाड़ में जैन धर्म के चारों ही सम्प्रदाय इसके समान रूप से सुदृढ़ स्तम्भ हैं। तुम स्वाद को नहीं, पथ्य को देखो। तुम वाद को नहीं, सत्य को देखो तुम नाद को नहीं, कथ्य को देखो, तुम तादाद को नहीं, तथ्य को देखो। - 'अम्बागुरु-सुवचन' 2--0--0-0--0 - 圖圖圖圖圖鑒区 GIO Jain Education International For Private Personale del PAREmBIDESon]

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