Book Title: Manussam khu Saddulla Ham Author(s): Chandanmuni Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 1
________________ आचार्य श्री चन्दनमुनि जी प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी धर्म में आस्था रखता हो अथवा न भी रखता हो, मानवता में विश्वास अवश्य रखता है । मानव में मानवीय गुणों का होना आवश्यक है । धर्म विश्वास और व्यक्तिगत आस्था की वस्तु है । उसमें विश्वास रखने वाला स्वर्ग-नरक, पुण्य-पाप, इहलोक-परलोक आदि के अस्तित्व में भी विश्वास करता है, परन्तु मानवता में विश्वास रखने के लिये ऐसी बाध्यता नहीं है। मानव को सही रूप में मानव बनाने के लिये कुछ ऐसे व्यावहारिक नियम हैं, कुछ विशिष्ट गुण हैं, जिन्हें जीवन में उतारने से मनुष्य की दानवीय और पाशविक वृत्तियां नष्ट हो जाती हैं, फलत: उसके हृदय में मनुष्यत्व की उदार भावना का उद्भव होता है । माणुस्सं खु सुदुल्लहं भगवान् महावीर ने मनुष्यत्व की प्राप्ति के चार हेतु बतलाये हैं। यदि ये चार गुण जीवन में साकार हो जाएं तो व्यक्ति मनुष्यता प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है । उन चार कारणों का उल्लेख करते हुये भगवान् महावीर कहते हैं— “ चउहि ठाणेहिं जीवा मणुस्साउयत्ताए कम्मं पकरेंति तं जहा-पगइभद्दयाए, पगइविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरियाए । ” —— स्थानांग ४ / ६३० चार कारणों से जीव मनुष्यत्व के योग्य कर्मों को संचित करता है। मनुष्य-भव की प्राप्ति के योग्य बनता है । वे चार कारण हैं— प्रकृति - भद्रता, प्रकृति - विनीतता, सानुक्रोश-भाव और अमात्सर्य । ५० Jain Education International श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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