Book Title: Manussam khu Saddulla Ham
Author(s): Chandanmuni
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 8
________________ का पारायण किया : “इओ गया तओ गया, जोइज्जती न दीसइ। अम्हे न दिट्ठा तुम्हे न दिट्ठा, अगडे छूठा अणुल्लिया ॥” __ वहां गाथा में अणुल्लिका गुल्ली को कहा गया था, यहां कन्या का नाम अणुल्लिका या अणोलिका था। यह गाथा भी यहां घटित हो गई। अर्थात् बहुत अनुसंधान करने पर भी अणोलिका का पता नहीं लग रहा है । वह तो अगड में- अन्ध कूप में अथवा भूगर्भगृह में क्षिप्त है- छिपाई हुई है। इतना सुनते ही राजा चौकन्ना हो गया। मेरी बहिन किसी गर्भ-गृह में छिपाई हुई है। परन्तु महामात्य ने तो मुझे कहा था कि राजर्षि यव मुझे मारकर पुन: राज्य हथियाना चाहते हैं। यदि पिताश्री मेरी इस आशंका को निर्मूल करदें तो आगे की गुत्थी सुलझ जाए। मैं आजीवन इनका ऋणी रहूंगा। दूसरी ओर मुनि के स्वाध्याय में तीसरी गाथा का क्रम आया “सुकुमालय-भद्दलया, रत्तिं हिंडणसीलया। मम समासाओ नत्थि भयं, दीहपिट्ठाओ ते भयं ॥” __ अरे सुकुमार-सुकोमल ! भद्रप्रकृते ! रात्रि-भ्रमण करने वाले ! मेरी ओर से तुझे कोई भय नहीं है पर तुझे तो दीर्घपृष्ठ से भय है। यहां यह ज्ञातव्य है कि कुम्भकार का दीर्घपृष्ठ से सर्प का आशय था, जबकि यहां दीर्घपृष्ठ से महामात्य का नाम संकेतिक होता था। उपर्युक्त गाथा सुनते ही गर्दभिल्ल बिना मुनिदर्शन किये बाहर से ही अपने महल में लौट आया। सवेरा होने से पहले-पहले उसके आदेश से महामंत्री के आवास की तलाशी ली गई, पूरी छानबीन की गई। उसकी हवेली के तलघर में छिपाई गई अणोलिका को बरामद कर लिया गया। बहिन-भाई मिले । राजकुमारी के अपहरण का उद्देश्य क्या था, स्पष्ट हो गया। तत्काल महामंत्री की सारी संपत्ति जब्त कर ली गई और राजद्रोह के अपराध में उसे देश से निर्वासित कर दिया गया। हर्षोल्लास और उत्साह के साथ राजा गर्दभिल्ल सपरिवार राजर्षि यव के दर्शनार्थ आया। मंत्री, सामन्त, सेनानायक आदि साथ थे । सूचना पाकर यवपुर की जनता भी उमड़ पड़ी। स्वागत-सत्कार के साथ मुनिवर का नगर में पदार्पण हुआ। माणुस्सं खु सुदुल्लहं ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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