Book Title: Manusmruti
Author(s): J R Gharpure
Publisher: J R Gharpure
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अध्यायः ]
विषयानुक्रमणिका।
श्लो. पृ.
श्लो. पृ. दशवर्षापेक्षितमृणमसाध्यम्
अर्थिप्रत्यर्थिविप्रतिपत्तिनिराकरणम् शक्तिविहीनेधमणे
१५५ ६३४ निक्षेपन्यासः पुनःकरणे मूलात्त्पृथक् प्राग्वृद्धिलेखनम् १५६ ६३४ यथादायं निक्षेपग्रहः वृद्धिमूलसंकरे लघीयसी वृद्धिः १५६ ६३४ | साक्ष्यभावे निक्षेपयाचा प्राडिवाकेन । चक्रवृद्धौ देशकालातिक्रमे
१५७ ६३४ व्यत्यस्तक्रमः श्लोक इति व्यवहारिस्थापितवृध्यधिगमः १५८ ६३५ निक्षेपापहवे दर्शनप्रतिभुवि
१५९ ६३५ अपहवे दण्डः त्रिविधः प्रतिभूः
१५९ ६३६ प्रत्यनन्तरे निक्षेपोपनिधी न देयौ अपुत्रगामिप्रातिभाव्यादिसंग्रहः १६० ६३६ निक्षेप्तरि मृते प्रातिभाव्यादिमीमांसनम्
१६० ६३६
समुद्रनिक्षेपे पुत्रगामिप्रातिभाव्यम्
१६१ ६३६ चोरहृतादौ प्रतिभूप्रश्नः
१६२ ६३७ निक्षेपादिशोधने प्रातिभाव्यं पुत्रेऽपि
१६३ ६३८ न तत्त्वानिश्चये निग्रह इति मत्तोन्मत्तादिकृतव्यवहारे न सिद्धिः १६४ ६३८ अपह्नवे चोरवत् अप्रकृतिस्थकृतमकृतम्
१६४ ६३८ निक्षेपोपनिध्यपहारे अप्रकृतिस्थलक्षणम्
१६४ ६३८ । पुनर्दण्डवचनमीमांसनम् अस्वतन्त्रः सहेतुत इति मीमांसनम् १६४ ६३८ ओपधिकः ससाहायो वध्य इति अस्वतन्त्रकृतमकृतम्
१६४ ६३९ उपधोदाहरणम् अस्वतन्त्रसंग्रहोदाहारः
१६४ ६३९ निक्षेपविप्रवादे स्त्रीणां स्वातन्त्र्यं नेति
१६४ ६३९ | मिथदाये स्त्रीणां स्वधनविनियोगे स्वातन्त्र्यनियमनम् १६४ ६४० | अप्रकाशकृतस्य प्रकाशकरणं नेति बालोऽप्राप्तव्यवहार आ षोडशात
१६४ ६४० निक्षेपनिर्णयोपसंहारः अशास्त्रीय प्रतिष्ठितमपि न सत्त्यम १६५ ६४१ अस्वामिविक्रयः योगाधमनादिविक्रीतं निवर्तयेत्
अस्वामिविक्रयी स्तेनवत् योगाधमनमीमांसनम्
१६६ ६४१ अस्वामिविक्रयी दण्डयः योगकर्तुः कारयितुश्च दण्डः
अस्वामिविक्रये दण्डनिग्रही अथ विभक्तैरपि देयमितिविचारः ।। १६७ ६४२ अन्वयापसरशब्दयोरर्थः कुटुम्बार्थमध्यधीनकृतव्यवहारे । १६८ ६४२ अस्वामिकृतमकृतम् बलाल्लेखितादिषु
१६९ ६४३ आगमः स्वाम्यकारणम् न भोगः स्वयमुपेत्य साक्ष्यादिनेति
१७० ६४४ स्वाम्यकारणक्रयविचारः स्वयं कार्य नोत्साहयेदिति
६४४ अन्यायतः क्रये अदेयानादेये
१७१ ६४४ प्रकाशक्रये नाष्टिको धनम् . स्वादानादिभी राज्ञो बलवृद्धिः १७३ ६४५ विक्रयानईसंग्रहः याम्यया वृत्त्या वर्तेत
१७४ ६४५ विक्रयधर्माः अधर्मेण कार्यकरणे
१७५ ६४५ | एकशुल्केन उभे धर्मेणार्थदर्शने
१७६ ६४५ एवं कन्यां ददतो न दण्डः छन्दतो धनं साधयता दण्डः १७७ ६४६ | अथ संभूयसमुत्थानम् शक्तिविहीनऽधमणे
१७८ ६४६ । यज्ञवृतस्य कर्मानुरूपमंशदानम्
१८० ६४७ १८१ ६४७ १८२ ६४८ १८२६४८ १८३६४९ १८५६४९ १८६६५० १८७ ६५० १८९६५1 १९० ६५१ १९१ ६५१ १९१ ६५१ १९२ ६५१ १९३ ६५१ १९३ ६५२ १९४ ६५२ १९४ ६५२ १९५६५२ १९६६५३ १९६६५३ १९७ ६५३ १९८ ६५३ १९८ ६५३ १९९ ६५४ १९९ ६५४ १९९ ६५४ २०० ६५४ २०१ ६५४ २०२ ६५५ २०२ ६५५ २०३ ६५५ २०४ ६५५ २०४ ६५५ २०५ ६५६ २०६६५६ २०६ ६५६ २०७ ६५६
१६६
६४२
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