Book Title: Mantrajap ke Prakar aur Uska Vaigyanik Mahattva
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 3
________________ उन्होंने दिया है । वह इस प्रकार है : A 1 MY · nhf, जहाँ ( कंपनसंख्या = frequency) है और n = 1, 2, 3, 4 जहाँ A तरंगलंबाई / प्लांक का नियतांक ॥ कण का द्रव्यमान कण का वेग है । इसी सूत्र में 1111 = 1 रखने पर A = h/p होता है । जहाँ p वेगमान हैं और उसी द्रव्य-कण की शक्ति के लिये सूत्र है E = शक्ति है, 1⁄2 प्लांक का नियतांक है और f आवृत्ति इत्यादि पूर्णांक ( integer numbers) हैं । अर्थात् किसी भी तरंग स्वरूप द्रव्य-कण की | शक्ति का आधार उसकी आवृत्ति पर है और आवृत्ति तरंगलंबाई के व्यस्त प्रमाण में बढती है या घटती है अर्थात् तरंगलंबाई बढने पर आवृत्ति घटती है और तरंगलंबाई कम होने पर आवृत्ति बढती है । और वह तरंगलंबाई भी द्रव्य-कण के द्रव्यमान ( mass) व वेग के गुणाकार के व्यस्त प्रमाण में बढ़ती है । अर्थात् किसी भी सूक्ष्म द्रव्य-कण का द्रव्यमान या वेग या तो | दोनों बढाने पर तरंगलंबाई कम होती है । परिणामतः आवृत्ति बढती है अतः उसकी शक्ति भी बढती है । यही वात हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा | निर्दिष्ट जाप के प्रकार को भी लागू पडती है । 1 जैन धर्मग्रंथों के अनुसार वर्गणाओं के मुख्य रूप से आठ प्रकार है । | वर्गणा जैन धर्मग्रंथों का पारिभाषिक शब्द है । वर्गणा अर्थात् एक समान | संख्या में परमाणुओं को धारण करने वाले परमाणुसमूह प्रकार । प्रथम वर्गणा अर्थात् समग्र ब्रह्मांड में विकीर्ण एक एक परमाणु, जिनका स्वतंत्र अस्तित्व है । दूसरी वर्गणा अर्थात् दो दो परमाणुओं के समूह | तृतीय वर्गणा अर्थात् तीन तीन परमाणुओं के समूह । चतुर्थ वर्गणा अर्थात् चार चार परमाणुओं के समूह । संपूर्ण ब्रह्मांड में ऐसी वर्गणाओं के अनंतानंत प्रकार है किन्तु जीवों के लिये उपयोग में आनेवाली वर्गणा मुख्य | रूप से आठ प्रकार की है । Jain Education International }" · 1. औदारिक वर्गणा, 2. वैक्रिय वर्गणा, 3. आहारक वर्गणा 4 तैजस् वर्गणा, 5. भाषा वर्गणा, 6. श्वासोच्छ्वास वर्गणा 7. मनो वर्गणा, व 8. कार्मण वर्गणा । सभी वर्गणाओ के परमाणुसमूह में अनंत परमाणु होते हैं तथापि औदारिक वर्गणा के परमाणुसमूह से वैक्रिय वर्गणा के परमाणुसमूह में ज्यादा 45 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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