Book Title: Mantrajap ke Prakar aur Uska Vaigyanik Mahattva
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 1
________________ मंत्रजाप के प्रकार और उसका वैज्ञानिक महत्त्व पूजाकोटि समं स्तोत्र, स्तात्रकोटि समो जपः । जपकोटि समं ध्यानं. ध्यानकोटि समो लयः ।। वीतराग परमात्मा या अन्य किसी भी देव या देवी इत्यादि की एक करोड़ बार की पूजा के बराबर एक बार की उनकी स्तुति-स्तवना-स्तोत्रपाठ है । करोड़ बार की स्तुति-स्तवना के बराबर एक वार का मंत्रजाप है ! करोड़ बार के मंत्रजाप के बराबर एक बार का ध्यान है और करोड़ बार के ध्यान के बराबर केवल एक वार लय होता है क्योंकि लय में ध्याता, ध्येय और ध्यान तीनों एक हो जाते हैं । यहाँ सामान्य रूपसे पूजा कहने पर परमात्मा या देव-देवी की प्रतिमा की |श्रेष्ट द्रव्य केशर, चंदन इत्यादि से की गई पूजा लेना । वह भिन्न भिन्न प्रकार से अष्टप्रकारी, पंचप्रकारी एकोपचारी या इक्कीस प्रकार की या बहुविध प्रकार की होती है । इन्हीं पूजाओं में पूजन के द्रव्यों की महत्ता होती | है और प्रायः उसमें शरीर का व्यापार, शारीरिक क्रिया ही मुख्य होती है ।। और ऐसी करोड़ बार की पूजा के बराबर एक ही बार का स्तोत्रपाठ होता है। अन्यथा देवाधिदेव तीर्थकर परमात्मा की पूजा करते समय मन, वचन, काया की एकाग्रता प्राप्त होने पर यदि मन शुभ या शद्ध अध्यवसाय की श्रेणि पर आरूढ हो जाय तो नागकेतु की तरह केवल प्रभु की पूजा करते करते भी कैवल्यप्राप्ति हो सकती है । ठीक उसी प्रकार स्तुति-स्तवनास्तोत्रपाठ में सामान्यतः वाणी / वचन और काया की क्रिया ही मुख्य होती है और मन की प्रवृत्ति गौण होती है । ऐसे करोड़ बार के स्तोत्रपाट के बराबर एक बार का जाप होता है । जाप में सामान्य रूप से मन की ही प्रवृत्ति मुख्य होती है । वहाँ वचन/वाणी व काया की प्रवृत्ति प्रायः नहीं होती है और " मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः " उक्ति अनुसार जब मन अशुभ कार्य से निवृत्त होकर शुभ कार्य में प्रवृत्त होता है तब अशुभ कर्म के आरत्रव का संवर हो जाता है और शुभ कर्म का बंध होता है । और उसमें ही आगे बढ़ते-बढते जाप करने वाला ध्यानस्थ हो जाता है । अतएव करोड़ बार के जाप के बराबर एक वार का ध्यान होता है । उसी ध्यान में ध्याता, ध्येय | 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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