Book Title: Mantradhikar
Author(s): Ahmedabad Vidyashala
Publisher: Ahmedabad Vidyashala

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Page 277
________________ ਰੋਪ काया है सारे मनुमं सिंदालसं वियं सपरिवार।। धममेरागरमाएं। विश्वसंनियनयो हिं॥9॥ प्र ते मोरह || निचे जे हिग्य संठिया 'मङ्ग॥ पावई को हिंफलं ॥ संपते कप्परु रकं हि निहुँ जाए मित्र ।। उपयक मसंसु निम्मधारा तहऊरुदेव पसायं ॥ जहद रिसायें प्रमंदे सिगर धन्ना कयपुन्ना || देवा देवीय मालवा सङ्घे ॥ जे संसय चुच्चें ।। करति नुहएण्यमूले मि ॥१०॥

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