Book Title: Mantra Adhikar
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 160
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर मंत्र-ॐ णमो अरहंताणं भो अन्ते वासिन् । षट्जीव निकाय रक्षणाय मार्दवादि गुणोपेत मिदं पिच्छिकोपकरणं गृहण गृहाणेति । (23) निम्न मंत्र बोलकर शास्त्र प्रदान करें मंत्र-ॐ णमो अरहंताणं मति श्रुतावधि मनः पर्यय केवल ज्ञानाय द्वादशांग श्रुताय नमः । भो अन्तेवासिन ! इदं ज्ञानोपकरणं ग्रहण ग्रहाणेति । — (24) निम्न मंत्र बोलकर बाएँ हाथ में कमंडल प्रदान करें मंत्र- ऊँ णमो अरिहंताणं रत्नत्रय पवित्रीकरणांगाय बाह्याभ्यन्तर मल शुद्धाय नमः भो अन्तेवासिन इदं शौचोपकरण ग्रहण, ग्रहाणेति । (25) अब अन्त में समाधि भक्ति पढ़कर दीक्षा विधि पूर्ण करें। नवदीक्षित मुनि पहले गुरु को नमस्कार कर फिर संघ के अन्य मुनियों को नमस्कार करें। किन्तु अन्य मुनि तब तक प्रतिवंदना न करें जब तक व्रतारोपण नहीं हुआ । (26) शुभ मुर्हृत में व्रतारोपण करें पहले रत्नत्रय पूजा कर पाक्षिक प्रतिक्रमण करें फिर पाक्षिक नियम के पूर्व वदसमिदिदिय इत्यादि पढ़कर पूर्ववत् व्रत आदि दें, नियम ग्रहण के समय यथायोग्य एक तप दें (पल्यविधानादिक) किसी दातृप्रमुख (श्रावक) को उत्तम फलादि थाली में रखकर नवमुनि भेंट करें तथा गुरु उस श्रावक को एक तप नियम दें। फिर सभी प्रतिवंदना करें। ( 27 ) मुख शुद्धि मुक्ताकरण विधि त्रयोदशसु पंचसु त्रिसु वा कच्चोलिकासु लवंग एलापूंगीफलादिकं निक्षिप्य ताः कच्चोलिकाः गुरोरग्रे स्थापयते । मुखशुद्धि मुक्तकरणं पाठक्रियायामित्याद्युच्चार्य सिद्ध-योगि आचार्य शांति समाधिभक्ति विधाय ततः पश्चातमुखशुद्धिं गृहणीयात् । 135. आर्यिका दीक्षा विधि आर्यिका दीक्षा विधि - मुनि दीक्षा के समान ही आर्यिका दीक्षा के संस्कार होते हैं । अन्तर केवल इतना है कि मुनि दीक्षार्थी सभी के समक्ष सभी वस्त्र आभूषणों का त्याग कर नग्न हो जाता है, किन्तु आर्यिका दीक्षार्थी एक पहनने वाली साड़ी को छोड़कर सभी का त्याग करती है। दूसरा वह मुनि के समान खड़े होकर आहार न करके एक जगह बैठकर करपात्र मे ही आहार करती है। नोट- गुरू जी संस्कार दीक्षा विधि मंत्र में मुनौ स्फुरतु की जगह आर्यिकायां स्फुरतु बोलकर संस्कार प्रदान करें । 136. क्षुल्लक दीक्षा विधि नोट - (1) क्षुल्लक दीक्षा एवं क्षुल्लिका दीक्षा विधि मुनि दीक्षा विधि के लगभग समान ही है अन्तर सिर्फ इतना है कि क्षुल्लक - क्षुल्लिका के अट्ठाईस मूलगुण संस्कार और षोडश संस्कार नहीं होते है उसकी जगह उनके सिर पर ग्यारह प्रतिमाओं के संस्कार किए जाते हैं। 252

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