Book Title: Manjil ke padav Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 2
________________ विवेक सोता भी है, जागता भी है। प्रस्तुत पुस्तक में विवेक जागरण के कुछ सूत्र हैं, मंत्र हैं, प्रयोग हैं और पद्धतियाँ हैं। 'घड़ा जहर का और ढक्कन अमृत का' यह बाह्य जगत् और अर्न्तजगत् का यथार्थ चित्रण है। भीतर का दिखाई नहीं देता, बाहर का दिखाई देता है, इसीलिए मनुष्य रक्त को इतना मूल्य नहीं देता, जितना चमड़ी को देता है। जीवन को उतना महत्व नहीं देता, जितना जीविका को देता है। अमन को उतना मूल्य नहीं देता, जितना मन को देता है। मन के अमन बन जाने पर घड़ा भी अमृत का और ढक्कन भी अमृत का। मन को साधने के लिए बहुत जानना जरूरी है, उससे भी अधिक जरूरी है अमन को साधने के लिए। नौका नदी में ही रहेगी तट पर नहीं जाएगी पर तट तक जाने के लिए जरूरी है नौका। मन जरूरी है अमन तक पहुँचने के लिए। वही नौका तट तक ले जाती है, जो निश्छिद्र हो। वही मन अमन तक ले जा सकता है, जिसमें छेद न हो। यह निश्छिद्रता की साधना परम तत्व है। उसके लिए पाथेय बन सकती है, यह पुस्तक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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