Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ ० महाप्रज्ञ कहते हैं समस्या वहीं है, जहां भोग है कल्पित मिथ्या संयोग-वियोग है जिसने जीया है संबंधातीत जीवन पाया है उसने नया चिन्तन न समस्या है न विचलन समाहित उसकी हर उलझन । ० पथ वह नहीं है जो उलझाए पथ वह है जो उलझी जटा सुलझाए ० यह स्पष्ट है जहां जीवन है वहां उलझन है दुःख शय्या भी है सुख शय्या भी है उपजता है चिन्तन क्यों आते हैं ये क्षण क्यों होता है रोग क्यों होता है शोक आता है बुढ़ापा अंतः बाह्य मुटापा क्यों होती है असमय मौत व्यक्ति मर जाता है बेमौत क्यों सताता है पाप कितना देता है संताप । चाहता है सुख मिलता है दुःख जीवन के हर पड़ाव पर कर्म बंधता है निरन्तर कैसे मिलेगी मुक्ति ? कब मिलेगी मुक्ति ? टूटेंगे बंधन खिलेगा जीवन उपवन बाधाएं सब अनचाहीं मिले मंजिल मनचाही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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