Book Title: Manav Sarjit Durghatanaono Bhog Banel Ek Vidyatirth Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ March-2004 89 माहिती मानव-सर्जित दुर्घटनानो भोग बनेल एक विद्यातीर्थ विजयशीलचन्द्रसूरि 'भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट' ए डॉ. रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकरनी विद्याना मानमां, ई. १९१७मां स्थपायेखें, पूनानुं एक विश्वविख्यात प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान छे. आ प्रतिष्ठाननी स्थापनामां जे विविध विद्वानोए रस लीधो, तेमां एक प्रमुख अने सक्रिय जैन विद्वान् पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी पण हता. ई. १९८१मां अमे आ प्रतिष्ठाननी मुलाकाते गयेला, त्यारे त्यांना विद्वान् संचालके मुनि जिनविजयजीने 'संस्थाना स्थापको पैकी एक' तरीके आदरपूर्वक याद करेला, ते हजी याद रह्यु छे. आ प्रतिष्ठानमां हजारो हस्तप्रतिओनो जे दुर्लभ सङ्ग्रह छे, तेमांना मोटा भागना के घणा बधा ग्रन्थो जैन ग्रन्थो छ; अने ताडपत्रोनो मोटो - लगभग पूरो विभाग जैन ग्रन्थोनो ज गणी शकाय तेवो छे. जैन हस्तप्रतिओ, वर्णनात्मक सूचिपत्र, विख्यात जैन विद्वान् डॉ. हीरालाल र. कापडियाए तैयार करेलुं, जे आशरे चौद ग्रन्थोमां प्रतिष्ठान द्वारा ज मुद्रित थयेखें. तो डॉ. एच.डी.वेलणकरनो प्रख्यात 'जिनरत्नकोश-१' पण अहीथी ज तैयार थई बहार पडेलो. जर्मनीनां जैन विदुषी श्राविका सुभद्रादेवी (शार्लोट् क्राऊझे) नो दुर्लभ ग्रन्थसङ्ग्रह पण आ प्रतिष्ठानमा ज सचवायो छे. अने जैनागमोनी भाषा 'प्राकृत'नो बृहत् कोष निर्माण करवानुं एक अद्भुत विद्याकार्य पण, हाल, आ ज प्रतिष्ठानमा चाली रह्यं छे. आ छे जैनोनो भां.ओ.रि.इ. साथेनो अनुबन्ध. ताजेतरमां (जान्युआरी ५, २००४)ज पूनानी 'सम्भाजी ब्रिगेड' नामनी मण्डलीनां एक मोटा टोळांए भाण्डारकर प्रतिष्ठान पर हिंसक हुमलो कर्यो, अने न कल्पी शकीए तेवू-तेटलुं नुकसान पहोंचाड्यु. हुमलो करवानुं कारण ए हतुं के USA ना जेम्स लेने नामना एक विद्वाने 'शिवाजी : ए हिन्दू किंग इन इस्लामिक इन्डिया' नामे संशोधनात्मक ग्रन्थ लखेलो, अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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