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माहिती
मानव-सर्जित दुर्घटनानो भोग बनेल एक विद्यातीर्थ
विजयशीलचन्द्रसूरि 'भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट' ए डॉ. रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकरनी विद्याना मानमां, ई. १९१७मां स्थपायेखें, पूनानुं एक विश्वविख्यात प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान छे. आ प्रतिष्ठाननी स्थापनामां जे विविध विद्वानोए रस लीधो, तेमां एक प्रमुख अने सक्रिय जैन विद्वान् पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी पण हता. ई. १९८१मां अमे आ प्रतिष्ठाननी मुलाकाते गयेला, त्यारे त्यांना विद्वान् संचालके मुनि जिनविजयजीने 'संस्थाना स्थापको पैकी एक' तरीके आदरपूर्वक याद करेला, ते हजी याद रह्यु छे. आ प्रतिष्ठानमां हजारो हस्तप्रतिओनो जे दुर्लभ सङ्ग्रह छे, तेमांना मोटा भागना के घणा बधा ग्रन्थो जैन ग्रन्थो छ; अने ताडपत्रोनो मोटो - लगभग पूरो विभाग जैन ग्रन्थोनो ज गणी शकाय तेवो छे. जैन हस्तप्रतिओ, वर्णनात्मक सूचिपत्र, विख्यात जैन विद्वान् डॉ. हीरालाल र. कापडियाए तैयार करेलुं, जे आशरे चौद ग्रन्थोमां प्रतिष्ठान द्वारा ज मुद्रित थयेखें. तो डॉ. एच.डी.वेलणकरनो प्रख्यात 'जिनरत्नकोश-१' पण अहीथी ज तैयार थई बहार पडेलो. जर्मनीनां जैन विदुषी श्राविका सुभद्रादेवी (शार्लोट् क्राऊझे) नो दुर्लभ ग्रन्थसङ्ग्रह पण आ प्रतिष्ठानमा ज सचवायो छे. अने जैनागमोनी भाषा 'प्राकृत'नो बृहत् कोष निर्माण करवानुं एक अद्भुत विद्याकार्य पण, हाल, आ ज प्रतिष्ठानमा चाली रह्यं छे. आ छे जैनोनो भां.ओ.रि.इ. साथेनो अनुबन्ध.
ताजेतरमां (जान्युआरी ५, २००४)ज पूनानी 'सम्भाजी ब्रिगेड' नामनी मण्डलीनां एक मोटा टोळांए भाण्डारकर प्रतिष्ठान पर हिंसक हुमलो कर्यो, अने न कल्पी शकीए तेवू-तेटलुं नुकसान पहोंचाड्यु. हुमलो करवानुं कारण ए हतुं के USA ना जेम्स लेने नामना एक विद्वाने 'शिवाजी : ए हिन्दू किंग इन इस्लामिक इन्डिया' नामे संशोधनात्मक ग्रन्थ लखेलो, अने
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तेमां पोताने सहाय करवा बदल प्रतिष्ठाननो तथा तेनो विद्वाननो ऋणस्वीकार
करेलो.
र
हतु.
आ ग्रन्थमा लेखके शिवाजी विषे अमुक खराब विधानो करेला, जे विषे विद्वानोए असहमती जाहेर करेली; सरकारे ते ग्रन्थ पर प्रतिबन्ध पण मूकी दीधो हतो, तो प्रकाशकोए ते पुस्तक पार्छ पण खेंची लीधुं हतुं, आम, घसातुं लखवा बदल जे पण प्रतिकार थवो घटे ते थई गयो हतो, अने प्रकरण पर पूर्णविराम क्यारनुय मूकाई गयुं हतुं.
आम छतां, आ टोळांने अचानक क्रोध आवी गयो, अने पेला लेखकने आ प्रतिष्ठाने सन्दर्भो पूरा पाड्या होवाना प्रतिष्ठानना अपराधने याद करीने ते टोळांए संस्था पर हुमलो कर्यो. आ हुमलामा सामेल आशरे १५० जणाए प्रतिष्ठानने शुं अने केटलुं नुकसान पहोंचाड्युं, तेनो अंदाज, विभिन्न वृत्तपत्रोमां छपायेली नीचे संगृहीत विगतो जोतां आवी जशे : .
'गुजरात समाचार' (अमदावाद आवृत्ति, ता. ६-१-२००४) जणावे छे के "अंदाजे दोढसो जेटला लोको अलग अलग वाहनोमां बेसीने आव्या हता. तेमणे सूत्रोच्चारो करवा साथे संशोधन संस्थाना सम्पूर्ण परिसरमां तोडफोड करी हती. केटलीक दुर्लभ हस्तप्रतो सहित हजारो पुस्तकोने आगमां झींकीने नुकसान पहोंचाडवामां आव्युं हतुं- एम कहीने पोलीसे उमेर्यु के आ टोळांए अत्यन्त जूना हस्तलिखित तालपत्र, कंप्यूटरो, जेरोक्स मशीनो वगेरे जे हाथमां आव्युं तेनो भूको बोलाव्यो हतो. तेमणे फर्निचरने पण घणुं नुकसान पहोंचाड्युं हतुं."
बेंगलोर-जयपुरथी प्रकाशित थता हिन्दी दैनिक 'राजस्थान पत्रिका' ना ता. २५-१-२००४ना अंकना रविवारीय परिशिष्टमां, वाणी भटनागरना लेख 'विरासत पर कहर मां जणाव्युं छे के, "संभाजी ब्रिगेड के कार्यकर्ताओंने विरासत-संरक्षण में संलग्न इस संस्था पर अपनी क्रोधाग्निका कहर ढाया । हजारो दुर्लभ पाण्डुलिपियों, प्राचीन पुस्तकों एवं ताडपत्र अभिलेखों के संग्रह से सजा अध्ययन और अनुसन्धान का यह मन्दिर अब उजाड नजर आता है ।.... तोडफोड की घटना के दौरान इन्स्टूट्यट में संरक्षित १८००० पुस्तकें और तीस हजार दुर्लभ पाण्डुलिपियां विरासत के कथित पहरेदारों
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प्रतिष्ठाननी गवर्निंग काउन्सिलनां अध्यक्ष लीला अर्जुनवाडकरने टांकतां रा.प.नोंधे छे के, "भां.ओ.रि.इ. के नुकसान से. भारतीय विरासतको गहरां धक्का लगा है । उसके लिए फिरसे पैरों पर खडा होना मुश्किल है।"
तो बेंगलोरथी प्रगट थता संस्कृत मासिक 'सम्भाषण सन्देश' ना फेब्रुआरी २००४ना अंकमां 'अभिभूतं हि भाण्डारम्' शीर्षकथी आपवामां आवेलो सचित्र हेवाल जणावे छे के,
"छत्रपतेः शिवाजे: जयघोषं कुर्वन्तः ते कार्यकर्तारः संस्थाया ग्रन्थालये विद्यमानं 'शिवचरित्र' ग्रन्थसङ्ग्रहं एव प्रथमं अभिभवन्ति, तस्यैव सङ्ग्रहस्य नितरां हानि कुर्वन्ति इति तु दैवदुर्विलास एषः । ग्रन्थालये सुरक्षितानां ग्रन्थराशीनां अधः पातनं छेदनं, उपस्करस्य हानिः, सङ्गणकानां विनाशः, पाण्डुलिपिसङ्ग्रहस्य विनाशः- इति तेषां क्रोधाभिव्यक्तेः प्रथमं फलम् । ग्रन्थालये दर्शनीय स्थले स्थापिता भगवत्याः सरस्वत्या मूर्तिः एतैः खण्डशः कृता । छत्रपतेः शिवाजिमहाराजस्य च चित्रं नाशितम् । भारतविद्यायाः संस्कृतस्य च अध्येतृणां विदुषां छायाचित्राणि तैलचित्राणि च समूहेन स्फालितानि खण्डितानि च । संस्थाया मुख्यसभागृहे स्थापितं रामकृष्ण-गोपाल-भाण्डारकर महोदयस्य महत् तैलचित्रं तस्य च मूर्तिः आहतवस्तुषु अन्यतमे । तत्रैव भाण्डारकरमहोदयेन संस्थायाः स्थापनासमये समर्पितस्य ग्रन्थसङ्ग्रहस्य महती हानिः अभवत् । ... एतेषु विनाशकेषु ७२ जनाः आरक्षिभिः धृताः । तेषां विषये विधिकार्यमिदानी प्रचलति । ते दण्डिताः चेदपि अप्राप्यानां ग्रन्थानां वस्तूनां च या हानि: अस्मिन् प्रसङ्गे सञ्जाता, सा कथं परिपूर्येत इति महान
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प्रश्नः । गम्भीरस्य अध्ययनस्य कृते आवश्यकी शान्तिः या विखण्डिता सा कथं पुनरायाति इति समस्या । किं नाम एतेन विनाशेन साधितं इति प्रश्न: वारंवारं सर्वेषां संस्कृतिप्रेमिणां मनस्सु उत्पद्यते ।”
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ဆိုင်
उपर उद्धृत अखबारी उद्धरणो एटलां स्पष्ट छे के तेना परथी ज थयेला नुकसाननो अंदाज मळी आवे छे. कोष-प्रकल्पने पण भारे हानि पहोंची होवाना हेवाल छे.
कोई पण ग्रन्थप्रेमी, विद्याभ्यासी अने संस्कृतिप्रेमीना हृदयमां घेरी चोट वागे अने कदी न ठरे एवी वेदना अनुभवाय एवी आ दुर्घटना छे. हा, दुर्घटना ज- पण मानवसर्जित !
आ विद्याध्वंस. जोईने, अमेरिकाए इराक पर करेला आक्रमण पछी त्यांना पुरातत्त्वीय सङ्ग्रहालयोमां, सफेद त्वचा धरावता विदेशीओए चलावेली सांस्कृतिक लूंटनुं सहज स्मरण थाय. विश्वनी एक प्राचीनतम, मेसोपोटेमियानी सभ्यताना ऐतिहासिक दस्तावेजी पुरावाओ, ए कहेवाता शिक्षित गोरा लोकोए जे रीते लूंट्या अने वगे कर्या, ते जोतां तेमना शिक्षणनुं अने पूनामां विद्याध्वंस करनारा टोळाना शिक्षणनुं गोत्र एक ज होवुं जोईए तेवुं लागे. जो ताडपत्रो अने हस्तप्रतिओने, उपरोक्त हेवालोमां थयेला वर्णन प्रमाणे, खरेखर नुकसान थयुं होय अने कोई पण रीते विनाश थयो होय, तो ते खूबज शोकजनक छे. विशेषतः जैनो माटे अने जैनोलोजीना अभ्यासीओ माटे खास. केमके अगाउ जणाव्युं तेम आ सङ्ग्रहमां अनेक दुर्लभ जैन आगमो, शास्त्र तथा विविध विषयना ग्रन्थोनी पोथीओ हती; जेमांनी केटलीकनी तो बीजी प्रति पण अन्यत्र नहि होय. ए रीते विचारीए तो, आपणा सौने थयेली आ मोटी अने कदी पूरी न शकीए तेवी खोट-हानि छे, तेमां शंका नथी. अनेक संस्थाओ, सरकार, लोको आ प्रतिष्ठानने थयेला आर्थिक नुकसान भरपाई करवा माटे आगळ आव्या होवानुं जाणवा मळे छे. पूनाना जैन संघने पण उचित सहाय करवा माटे प्रेरणा आपी छे. करशे. परंतु, रही रहीने ऊठतो अने घोळातो सवाल एक ज छे के आर्थिक तथा भौतिक खोट तो पूराशे, पण जे प्राचीन पोथीओ नष्ट थई हशे तेनी खोट शी रीते पूराशे ?
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( पूरवणी) आश्वस्त करे तेवो वास्तविक वृत्तान्त
भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट, पूनामां थयेल सांस्कृतिक नुकसाननी विगतो मेळवावा माटे करवामां आवेला पत्रव्यवहारमां जाणवा मळे छे के त्यांना हस्त प्रतिसङ्ग्रहने विशेष नुकसान नथी पहोंच्युं, अने ते सलामत रीते बची गयो छे.
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कोश- कार्यालयनां डॉ. नलिनीबेन जोशी पोताना ता. २३-२२००४ना पत्रमां लखे छे के "हानि तो सचमुच बहुत हुयी लेकिन वह सब काँच, कपाट, फैन, खिडकियां, टेबलकुर्सियां, कोम्प्युटर आदि भौतिक वस्तुओंकी ही ज्यादातर हुई । गणेश प्रतिमा, आल्बम गायब हुए और विद्वानों के तैलचित्र भी प्रायः नष्ट ही हो गये। सभी १ लाख किताबें और लगभग १०,००० पाण्डुलिपियाँ अलमारियों से नीचे गिरकर दबी अवस्थामें पडी हुई थी ।
शुक्र है कि सभी पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित है। किसी की भी चोरी नहीं हुई । एक भी किताब और पाण्डुलिपि जलायी नहीं है। मतलब है कि हमारी धरोहर प्रायः सुरक्षित है । बाकी कम्प्यूटर व सभी मौल्यवान् वस्तुओंकी पूरी तोडफोड हुयी है ।
पूना की लगभग ५० जैन महिलाओंने लगातार चार दिन काम करके १०-१५ हजार किताब ठीक-ठीक किये । प्राकृत- डिक्शनरी विभाग तो दो दिनमें व्यवस्थित किया । पूना के लगभग २०० विद्यार्थीयोंने मेन लायब्रेरी के लिए सहयोग किया । आर्थिक सहायता भी आम आदमी से लेकर उद्योगपति तक सभी कर रहे हैं ।
आप अंत:करण में बहुत व्यथित न होवे क्योंकि जो हानि हुई है वह पूरी करने लायक है और करेंगे ।"
आ वृत्तान्त खूब आश्वस्त करनारो छे. अलबत्त, पोथीओ नीचे नाखवी अने ते पर कपाटो नाखवा; कपाटो तळे पोथीओ दबाई जाय, तो
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________________ 94 अनुसंधान-२७ अमुक अंशे. प्रतोने नुकसान थयुं तो होय ज. उपरांत, भागवतनी मूल्यवान (प्राय: सचित्र) पोथीने फाडी नाखवामां आव्यानी तसवीर तो 'सम्भाषण सन्देश'मां छपाई पण छे. एटले एटलुं नुकसान पण ओछु तो नथी ज. छतां प्रथमदर्शी समाचारोने कारणे हजारो प्रतिओ नष्ट थयानी जे दहेशत जागी हती, ते आ पत्रमांनी विगतोथी दूर थाय छे, अने राहत थाय छे. जैन महिलाओनी सक्रियता पण खूब अभिनन्दनीय गणाय तेवी छे. ज्ञान अने ज्ञान-संस्था ए सहु कोईनी सहियारी मिलकत छे, अने तेना पर आपत्ति आवे त्यारे तेना निवारण माटे दोडी जq ए ज विवेकी जनोनुं श्रेष्ठ कर्तव्य छे, ते आदर्श ते महिलाओ तथा ते विद्यार्थीओए चरितार्थ करी बताव्यो छे. दरम्यान, पूनाना जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघे पण उदारतापूर्ण सहाय करवानुं नक्की कर्यु छे.