Book Title: Malva ke Swetambara Jain Bhasha Kavi Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 1
________________ मालवा के श्वेताम्बर जैन भाषा - कवि D साहित्य वाचस्पति श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर । मालव प्रदेश के साथ जैनधर्म का सम्बन्ध बहुत प्राचीन है, विशेषतः उज्जयिनी और दशपुर (मन्दसौर) के तो प्राचीन जैन उल्लेख बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । मध्यकाल में धार, नलपुर, नरवर, सारंगपुर, देवास, मांडवगढ़ आदि स्थानों के भी उल्लेख जैन साहित्य में मिलते ही हैं । वहाँ जैनधर्म का अच्छा प्रचार रहा है । समृद्धिशाली व धर्मप्रेमी जैन श्रावकों के वहाँ निवास करने के कारण विद्वान जैनाचार्यों और मुनियों का विहार भी मालवा में सर्वत्र होता रहा है इन स्थानों में रहते हुए उन्होंने अनेकों ग्रंथ भी बनाये हैं । खेद है कि अभी तक मालव प्रदेश के जैनधर्म के प्रचार वाले केन्द्र स्थानों के जैन इतिहास की कोई खोज नहीं की गई। उधर के जैन ज्ञान भंडार भी अभी तक अज्ञात अवस्था में पड़े हैं । अतः मालवा में बने हुए बहुत से जैन ग्रन्थ अभी तक प्रकाश में नहीं आ पाये । दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के मालव प्रदेश में अनेक हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहालयों में होंगे । उनका अन्वेषण भली-भांति किया जाना चाहिए । इन्दौर और उज्जैन के जैन ज्ञान भण्डारों की तो थोड़ी जानकारी मुझे है । इन्दौर के दो जैन भण्डारों के सूची - पत्र भी मैंने देखे थे और उज्जैन के एक यति प्रेमविजयजी के जैन भण्डार का सूची पत्र तो छपा भी था, पर सुना है, अब यह सब ग्रन्थ सुरक्षित नहीं रहे । मांडवगढ़ का जैन इतिहास तो बहुत ही गौरवशाली है । पर वहाँ के प्राचीन जैन मन्दिर और ज्ञान भण्डार सब नष्ट हो चुके हैं । धार में भी जैनों का अच्छा प्रभाव था, वहाँ कुछ पुरानी मूर्तियाँ तो हैं, पर ज्ञान भण्डार जानकारी में नहीं आया । उज्जैन के आस-पास में बिखरे हुए जैन पुरातत्त्व का संग्रह पं० सत्यधरजी सेठी ने किया है, पर जैन ज्ञान भण्डारों के सम्बन्ध में अभी तक किसी ने खोज नहीं की । उज्जैन के सिंधिया ओरियंटल इन्स्टीट्यूट में एक यतिजी का संग्रह आया है और अभी तक और भी कई यतियों और श्रावकों के संग्रह इधर-उधर अज्ञातावस्था में पड़े हैं जिनकी जानकारी अभी तक प्रकाश में नहीं आई है । नाचार्यों और मुनियों के सम्बन्ध में यह कहना बहुत कठिन है कि वे मालवा के कवि थे क्योंकि वे तो भ्रमणशील संत थे । वे कभी राजस्थान से गुजरात जाते हैं तो कभी राजस्थान से मालवा जाते हैं । इस तरह अनेक प्रान्तों में धर्म-प्रचार के लिए घूमते रहते हैं । जहाँ धर्म प्रचार विशेष होता दिखाई देता है एवं श्रावकों का विशेष For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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