Book Title: Main Kabhi Bhulunga Nahi Author(s): Rajaram Jain Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसंधान-१७. 225 से मैंने विशेष गौरव का अनुभव किया था / उसी समय मुझे श्रद्धेय डॉ. वासुदेवशरणजी अग्रवाल का कथन याद आ गया, जो वे निरन्तर कहा करते थे कि "सच्चा गुरु वही है, जो अपने शिष्य की प्रगति से प्रमुदित रहता हो / " परम पूज्य संघवी जी, पूज्य पं. महेन्द्रकुमार एवं पूज्य मालवणिया रूप रत्नत्रयी अथवा पण्डितत्रयी में से प्रथम दो के अन्तर्धान हो जाने पर भी श्रद्धेय पूज्य मालवणियाजी के दर्शन कर सान्त्वना मिलती थी और उनके पूर्व-युग की सारस्वत-झाँकिर्या का अहसास होता रहता था, किन्तु अब उनके भी तिरोहित हो जा., से वह जगत सूना-सूना हो गया है / वस्तुतः यह एक ऐसी अपूरणीय क्षति हुई है, जिनकी पूर्ति आगामी सदियों में भी पूर्ण न हो सकेगी। __पूज्य पं.जी मेरे लिए धर्म पिता थे, मेरे महान हितैषी एवं संरक्षक थे / अतः उनके देहावसान से मेरी व्यक्तिगत क्षति हुई है / किन्तु विधि का विधान विचित्र है, वह अटल है / अतः यथार्थता को स्वीकार किए बिना कोई गति नहीं / उनके भावुक बना देने वाले स्मृति-पुंजों के लिए मेरे शतशः वन्दन प्रणाम / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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