Book Title: Main Kabhi Bhulunga Nahi
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ अनुसंधान - १७•224 से अत्यन्त प्रभावित थे । उनकी प्रेरणा से सन् १९७४-७५ में भ. महावीर के २५०० वें परिनिर्वाण - वर्ष समारोह में "वीर निर्वाण भारती" द्वारा बड़ौत में उन्हें पुरस्कृत सम्मानित किया गया था । सन् १९७४ में आल इण्डिया ओरियण्टल कान्फ्रेंस का २७ वाँ अधिवेशन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (हरयाणा) में आयोजित था । उसमें श्रद्धेय गुरुवर पं. मालवणियाजी, प्रो. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, अपभ्रंश के महापण्डित प्रो. डॉ. भायाणीजी तथा मित्रवर डॉ. सागरमलजी, डॉ. के. आर. चन्द्रा, प्रो. शरद शाहा आदि भी उपस्थित हुए थे । उस समय मैं अपभ्रंश की कुछ दुर्लभ पाण्डुलिपियों का अध्ययन कर रहा था और एक सचित्र अप्रकाशित पाण्डुलिपि पर ही मैंने निबन्ध - वाचन भी किया था । पता नहीं उस निबन्ध में ऐसा क्या प्रभावी तथ्य था कि पं. मालवणियाजी एवं उपाध्येजीने मेरी प्रशंसा की और उसका सुफल यह मिला कि उनकी प्रेरणा से ओरियण्टल कान्फ्रेंस के प्राकृत एवं जैन- विद्या विभाग के आगामी २८वें अधिवेशन के लिए अध्यक्ष पद हेतु चुनाव में मेरे परम मित्र भाई डॉ. के. आर. चन्द्रा ने मेरा नाम प्रस्तावित किया, भाई शरदचन्द्र मोतीचन्द्र शाहा (पूना) ने उसका समर्थन किया और आगामी अधिवेशन ( कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ में आयोजित ) के लिए मैं अध्यक्ष निर्वाचित हो गया । मुझे बाद में चन्द्राजी ने बतलाया कि पं. मालवणियाजी एवं डॉ. उपाध्ये आदि का विचार था कि अभी तक वृद्ध लोक ही कान्फ्रेंस के प्राकृत एवं जैन- विद्या विभाग की अध्यक्षता करते आये थे । अतः अब किसी ऐसे युवक को अध्यक्ष बनाया जाय जो प्राकृत के क्षेत्र में लगन पूर्वक कार्य कर रहा हो और पाण्डुलिपियों के सम्पादन, संशोधन जैसे जैन - विद्या- विकास के कार्य में भी दत्तचित्त हो । अतः उन्हीं की प्रेरणा से मेरा नाम प्रस्तावित किया गया और उनके आशीर्वादों से मैं अध्यक्ष भी निर्वाचित हो गया । परम पूज्य उपाध्येजी तो कर्नाटक विश्वविद्यालय में आयोजित उस अधिवेशन में असामयिक दुःखद निधन के कारण उपस्थित न हो सके, किन्तु पूज्य पं. मालवणियाजी स्वयं उपस्थित हुए थे और उनकी उपस्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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