Book Title: Main Kabhi Bhulunga Nahi
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: ZZ_Anusandhan

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________________ अनुसंधान - १७०222 मैं कभी भूलूँगा नहीं राजाराम जैन सन् १९४९ का पर्यूषण पर्व था। उस समय मैं बनारस हिन्दु यूनिवर्सिटी का बी. ए. कक्षा का छात्र था । क्षमावाणी के पावन दिवस पर मैं यूनिवर्सिटी - प्रांगण में स्थित उनके आवास पर उनके चरण-स्पर्श करने गया था । तब तक मेरा उनसे घना परिचय नहीं था । मैं उन्हें केवल इसलिए जानता था कि मैंने वाराणसी स्थित स्याद्वाद जैन महाविद्यालय, सन्मति जैन निकेतन ( नदिया ) तथा पार्श्वनाथ जैन विद्याश्रम में उनके कई बार प्रवचन सुने थे और उनसे मैं उनके प्रति श्रद्धानवत एवं भावुक हो ऊठा था । - उन्होंने मुझे देखकर मेरा परिचय पूछा, तो अथ से लेकर इति तक मैंने अपनी सारी व्यथा-कथा उन्हें कह सुनायी । मेरी घोर गरीबी, आर्थिक विपन्नता तथा ज्ञानार्जन के प्रति मेरा दृढ़ संकल्प देखकर वे प्रभावित हुए और उसके बाद उन्होंने मुझे जैसा स्नेह दिया, वह मेरे जीवन के लिए एक शाश्वत प्रेरणा-स्रोत बना रहा । उनकी प्रेरणा से अगले वर्ष मैंने उनके विभाग में बौद्ध-जैन-दर्शन की शास्त्री - कक्षा में भी प्रवेश ले लिया । उसके लिए उन्होंने मुझे छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी करा दी, जो मेरे ज्ञानार्जन में विशेष सहायक बनीं | Jain Education International सन् १९५४ में मैंने एम.ए. तथा शास्त्राचार्य की उपाधियाँ प्राप्त कर ली, तब मेरी शोधोन्मुखी तथा लगनशीलता देखकर उनकी तथा उनके परम मित्र डॉ. वासुदेवशरणजी अग्रवाल की हार्दिक इच्छा हुई कि मैं उनके द्वारा संस्थापित प्राकृत टैक्स्ट सोसायटी (वाराणसी, जो बाद में अहमदाबाद ले जाई गई ) में शोधपदाधिकारी का पद स्वीकार कर लूँ । किन्तु मेरी हार्दिक इच्छा प्राध्यापकी करने की थी, अतः उक्त संस्था से न जुड़ सका और बनारस के बाहर शहडोल (मध्यप्रदेश) के गवर्नमेंट कालेज में प्राध्यापक का पद प्राप्त कर अध्यापन-कार्य करने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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