Book Title: Main Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 16
________________ ६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता अभी-अभी कुछ यात्री आये टाडगढ़ से | बस का ड्राइवर सेना में रहा हुआ व्यक्ति था । वह शराब का बहुत आदी था । मरने की हालत हो जाती फिर भी शराब छोड़ने की बात नहीं करता । यदि शराब नहीं मिलती तो तम्बाकू ज्यादा पीता | उसकी सारी आंतों में व्रण हो गये | डाक्टर ने कहा—आज दूध पीना है और कुछ नहीं खाना है । वह भोजन के समय गया और सामने जैसे ही व्यंजन, नमकीन चीजें आयीं, उसने सोचा—यही खाऊंगा, चाहे मरूं या जीऊं । अभी तो वर्तमान ही सार है । सब कुछ खा लिया, फिर बीमार पड़ गया । जानते हुए आदमी ऐसा क्यों करता है ? कोई मूर्ख तो नहीं है ? दुनिया में कोईं मूर्ख नहीं है, सब समझदार हैं | उपदेश देने वाला जितना समझदार होता है, हो सकता है कि श्रोता उससे कहीं ज्यादा समझदार निकल जाए । प्रश्न उपदेश का नहीं, प्रश्न समझदारी का नहीं, प्रश्न है जिसने अपनी जैविक रसायनों को बदलने की प्रक्रिया को समझ लिया और काम में ले लिया वह वास्तव में अपनी आदतों को बदल सकता है । जिसने उन रसायनों को नहीं समझा, वह अपनी आदतों को नहीं बदल सकता । रसायन बनते चले जाएं और हम यह मानें कि गुस्सा नहीं आएगा, यह संभव नहीं । आदमी शराब नहीं पीएगा यह भी संभव नहीं है | जितनी हत्याएं अपराध और बलात्कार होते हैं, जितनी चोरियां होती हैं, उनके पीछे आदमी बेचारा लाचार होता है, उसके बैठे हुए रसायन उसे जबरदस्ती प्रेरित करते हैं कि ठीक समय पर वह सारी अच्छाइयों को, उपदेशों को, धर्म के वाक्यों को भूल जाता है और बेभान होकर बुरा आचरण करने लग जाता है | बहुत बड़ा आश्चर्य है ? हम जीभ के रसों को जानते हैं, किन्तु हमारे भीतर बनने वाले जैविक रसायनों को नहीं जानते । हम दुनिया की शक्ति को जानते हैं, आंख की देखने की शक्ति है, कान की सुनने की शक्ति है, इसको जानते हैं, किन्तु इन्द्रिय की पटुता को नहीं जानते और इन्द्रियातीत को नहीं जानते । इन्द्रियातीत की हमें कोई जानकारी नहीं है । ऐसा भी कुछ हो सकता है जो इन्द्रिय से परे है । मैं तो मानता हूं कि विज्ञान ने सूक्ष्य उपकरणों के द्वारा मनुष्य का बहुत भला किया है और धर्म की बातों को भी सत्य की कसौटी पर कसने का अवसर दिया है। यदि विज्ञान की इतनी प्रगति नहीं होती तो हमारा जगत् स्थूल ही बना रहता, वह सूक्ष्मता की दिशा में प्रस्थान नहीं कर पाता | किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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