Book Title: Mahilaye Jain Sanskruti ki Seva me Author(s): Sumtibai Shah Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 7
________________ नहीं कहना चाहती कि स्त्रियाँ पुरुष विरोधी आन्दोलन करें या मोर्चे निकालें। मैं केवल यह चाहती हूँ कि स्त्रियाँ अपने क्रान्तिकारी विचारों और कार्योंके द्वारा पुरुषोंके मनमें स्त्रीके प्रति जो हीन भावना है, उसे दूर करें। उसके बाद ही वे स्त्रीके व्यक्तित्वके विकास पर विचार करनेके लिए तैयार हो सकते हैं। पुरुषके इस वर्चस्वसे छुटकारा पानेके लिये स्त्रियोंको पुरुषके मनमें स्त्रीजातिके प्रति समानता और मित्रताकी भावना पैदा करनेका यत्न करना होगा। परम्परागत रूढ़ियाँ और अन्धविश्वास, स्वयंके प्रति हीन भावना तथा गुलामी वृत्तिको छोड़कर उसे अपने विकासके लिये स्वयं सन्नद्ध होना होगा। परन्तु इसके लिये इस पुरुष का भी कर्तव्य हो जाता है कि वह स्त्रियोंके विकासमार्गमें जो कठिनाइयाँ हैं, उन्हें दूर करनेका यत्न करे। इस बीसवीं शताब्दीमें पुरुषोंके समान स्त्रियोंको भी प्रत्येक क्षेत्रमें समान अधिकार मिलना आवश्यक है। आधुनिक कालमें जैन नारीका कार्य आधुनिक वैज्ञानिक युगमें जैन महिलाओंने अनेक क्षेत्रोंमें महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं । सामाजिक, सांस्कृतिक, राजकीय या धार्मिक क्षेत्रमें जैन महिलाओंके मौलिक कार्योके दर्शन होते हैं । यद्यपि जैन महिलाओंमें उच्च शिक्षित महिलाओंकी संख्या कम हो सकती है, तथापि जो सुशिक्षित महिलायें हैं, उन्होंने अपनी शिक्षा का उपयोग जैन समाजके विकासके लिये किया है। इतना ही नहीं, आज अनेक महिलाओंने पत्रकारिता, पुस्तक प्रकाशन, शोध और अध्ययनमें महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । इसके लिये अनेक जैन विदुषियोंके उदाहरण दिये जा सकते हैं। बीसवीं सदीकी जैन महिलाओंमें श्रीमती रमा जैनका कार्य जैन समाज कभी विस्मृत नहीं कर सकता। साहित्यके क्षेत्रमें आपने हिन्दीकी जो सेवा की है, उसके लिये साहित्य जगत आपका सदैव ऋणी रहेगा। माधुरी, पराग, सारिका, दिनमान, धर्मयुग जैसी पत्रिकाओंने गम्भीर व विचारपूर्ण साहित्यके कारण हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओंकी पत्रिकाओंमें अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया है। यह केवल आपके अपूर्व साहस व मार्गदर्शनका ही फल है। ज्ञानोदय और भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशनके माध्यमसे हिन्दीके वरिष्ठतम लेखकों और चितकोंसे लेकर नये प्रतिभाशाली लेखक तक उनके साहित्यिकि परिवारके अंग बन चुके हैं। इतिहासकार, पुरातत्त्वविद्, कलामर्मज्ञ, धर्मव्याख्याता और नाट्य कर्मी-सभीने भारतीय ज्ञानपीठके माध्यमसे साहित्य जगत्को अपने ज्ञानसे लाभान्वित किया है । हिन्दीके साथ सभी भारतीय भाषाओंके वरिष्ठ लेखक आज एक साहित्यिक मंच पर एकत्रित हुए हैं। यह सब श्रीमती रमा जैनकी निष्ठा और योजनाका ही परिणाम है । ज्ञानपीठ पुरस्कार उच्च साहित्यकारोंके प्रति उनकी कृतज्ञताकी भावनाका द्योतक है । वे सांस्कृतिक और सामाजिक संघटन, साहित्य, चित्रकला, रंगमंचकी नवीनतम गतिविधियोंसे न केवल सम्पर्क बनाये रखती थीं बल्कि प्रत्येक दिशामें हिन्दीकी प्रतिभाको खुला आकाश मिले, इसके लिए चुपचाप बिना किसी आत्मविज्ञापनके प्रयत्नशील रहती थीं। इस प्रकार अत्याधनिक हिन्दी साहित्यके विकासमें और प्राचीन अर्वाचीन ग्रन्थ प्रकाशनमें श्रीमती रमारानीका नाम स्वर्ण अक्षरोंमें अंकित करने योग्य है। मगनवाई कंकुबाई और ललिता बाईने जैन नारी शिक्षणकी आधारशिला रखी, ऐसी कहा जाये, तो अनुचित नहीं होगा। नारी समाजका विकास शिक्षणकी प्रवृत्ति बढ़ानेसे ही होगा, ऐसा उनका विश्वास था । बम्बईमें श्राविकाश्रमकी स्थापना, पददलित विधवाओंके लिये वसतिगृह व शिक्षाकी सुविधा जैसे कार्य आपने किये । आजकी अनेक जैन शैक्षणिक संस्थायें, अस्पताल आदि कंकूबाईके दातृत्व व नेतृत्वके कारण विकसित हुये हैं। श्रीमती कुसुमबेन शहा भारतीय जैन सहामण्डलकी एक कार्यशील पदाधिकारी हैं । पूनामें कुसुमाग्राम तथा बम्बईमें श्रद्धानन्द महिलाश्रम उनके नेतृत्वसे ही प्रगति पथ पर हैं । आपके -३०० - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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