Book Title: Mahilaye Jain Sanskruti ki Seva me
Author(s): Sumtibai Shah
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 10
________________ माताने श्रीमत रायचन्दके मार्ग दर्शनके अनुसार मासाहार न करनेका, मद्यपान न करनेका, परस्त्रीको माताके समान माननेका उपदेश किया था। उसीके कारण वे आगे चलकर राष्ट्रपिता बने / हजारों वस्तुओंसे घरका या बाह्य शरीरका सौन्दर्य बढ़ानेके पहले मनका सौन्दर्य बढ़ाना आवश्यक है। घरको नरक बनाना आसान काम है, परन्तु उसे स्वर्ग बनाना कठिन काम है। जिस घरका प्रत्येक व्यक्ति संस्कार सम्पन्न है, वह घर भले ही गरीबका हो, अलौकिक सुखसे सम्पन्न है, ऐसा मैं समझती हूँ। कुटुम्बमें जो वयोवृद्ध व्यक्ति हो, उनका परिवारके सभी सदस्योंका समूचित सम्मान व आदर करना चाहिए क्योंकि वृद्ध व्यक्ति ही भारतीय कुटुम्ब संस्थाका आधार स्तम्भ है। आरोग्य सभी सुखोंका कारण है। अतः महिलाओंको आसन, योग अथवा स्त्रियोचित कोई व्यायाम करके अपना शरीर सुदढ़ बनाना चाहिये / क्योंकि सुदढ़ माता ही सुदढ़ बालकको जन्म दे सकती है। स्वस्थ व्यक्तिके हो स्वस्थ विचार हो सकते हैं। जहाँ तक हो सके, रसोईका काम माताओंको स्वयं करना चाहिये, क्योंकि उसके हाथसे बने हुए पदार्थों में शुद्धताके साथ-साथ स्नेहरस भी मिला रहता है। सभी महिलाओंको जैन व्रतोंका पालन करना चाहिये। धार्मिक ग्रन्थोंका अध्ययन नियमित रूपसे करना चाहिये। तभी वे अपने बच्चोंको धार्मिक संस्कार और धार्मिक पाठ दे सकती हैं। धार्मिक शिक्षा आजके जगतमें स्कल और महाविद्यालय में मिलना असम्भव है। यदि उन्होंने इस बातका ध्यान रखा, तो पाश्चात्य देशोंमें नवयुवक और नवयुवितियोंमें जो आज नैराश्यकी भावना दिखाई देती है, वह भारतमें नहीं दिखाई देती। कर्त्तव्यपालनके बाद अधिकार उसे प्राप्त करनेका पूराका पूरा अधिकार है। . आजका समाज पुनः करवट बदल रहा है / नारी-जागरणका शंख बज उठा है। वह अपने कर्तव्यका पालन तो करेगी, परन्तु साथमें वह अपने अतीतके खोये हुये गौरव और अधिकारको पानेके लिये प्रयत्नशील है। वह विकासकी सब दिशाओंमें, सब क्षेत्रोंमें तेजीसे अग्रसर हो रही है। अभी तक वह कदम-कदम पर तिरस्कार और अपमानकी ठोकरें खाती आ रही थी, पर अब समय बदल रहा है। वह अब घरकी चहार दिवारीमें बन्द बन्दिनी नारी नहीं रही / अतः महावीरके भक्त श्रमणों व श्रावकोंसे भी मेरी अपेक्षा है कि वे उसे देने ही पड़ेंगे तभी वह समाजको नये स्वर्ण विहानमें ला सकेगी। -- 303 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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